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युग्म अध्ययन
संखेज्जवासाउय-असंखेज्जवासाउय-पज्जत्ता-अपज्जत्तएसु य, न कओ वि पडिसेहो जाव अणुत्तरविमाणे त्ति।
२-४ परिमाणं अवहारो, ओगाहणा य जहा असन्निपंचेंदियाणं। ५. वेयणिज्जवज्जाणं सत्तण्डं पगडीणं बंधगा वा, अबंधगा वा, चेयणिज्जस्स बंधगा, नो अबंधगा। ६. मोहणिज्जस्स वेयगा वा, अवेयगा वा। सेसाणं सत्तण्ह वि वेयगा, नो अवेयगा। सायावेयगा वा, असायावेयगा वा। ७. मोहणिज्जस्स उदई वा, अणुदई वा, सेसाणं सत्तण्ह वि उदई, नो अणुदई। ८. नामस्स गोयस्स य उदीरगा, नो अणुदीरगा, सेसाणं छह वि उदीरगा वा, अणुदीरगा वा। ९. कण्हलेस्सा वा जाव सुक्कलेस्सा वा।
१०. सम्मदिट्ठी वा, मिच्छादिट्ठी वा, सम्ममिच्छादिट्ठी वा। ११.णाणी वा, अण्णाणी वा। १२. मणजोगी वा, वइजोगी था, कायजोगी वा, १३-१६. उवओगा, वन्नाई, उस्सासगा, निस्सासगा आहारगा य जहा एगिंदियाणं।
१५८७ । ये संख्यातवर्षायु और असंख्यातवर्षायु वाले पर्याप्तक और अपर्याप्तक जीवों में से आकर उत्पन्न होते हैं। अनुत्तरविमान पर्यन्त किसी भी गति में आने जाने का निषेध नहीं है। २-४ इनका परिमाण, अपहार और अवगाहना असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के समान है। ५. ये जीव वेदनीयकर्म को छोड़कर शेष सात कर्मप्रकृतियों के बन्धक या अबन्धक हैं और वेदनीयकर्म के तो बन्धक ही हैं, अबन्धक नहीं हैं। ६. मोहनीयकर्म के वेदक या अवेदक हैं। शेष सात कर्मप्रकृतियों के वेदक हैं, अवेदक नहीं हैं। वे सातावेदक या असातावेदक हैं। ७. मोहनीयकर्म के उदयी या अनुदयी हैं। शेष सात कर्मप्रकृतियों के उदयी हैं, अनुदयी नहीं है। ८. नाम और गोत्र कर्म के वे उदीरक हैं, अनुदीरक नहीं हैं। शेष छह कर्मप्रकृतियों के उदीरक भी हैं और अनुदीरक भी हैं। ९. कृष्णलेश्या से शुक्ललेश्या पर्यन्त छहों लेश्याएँ पाई जाती हैं। १०. वे सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि भी हैं। ११.वे ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। १२. वे मनोयोगी, वचनयोगी और काययोगी हैं। १३-१६. उनमें उपयोग, शरीर के वर्णादि चार, उच्छ्वासनिःश्वास और आहारक (अनाहारक) का कथन एकेन्द्रिय जीवों के समान है। १७.वे विरत, अविरत या विरताविरत होते हैं।
१८. वे क्रियावान् हैं, अक्रियावान नहीं हैं। प्र. १९. भंते ! वे जीव सप्तविध-कर्मबन्धक, अष्टविधकर्म
बन्धक, षड्विधकर्मबन्धक या एकविधकर्मबन्धक होते हैं ? उ. गौतम ! वे सप्तविधकर्मबन्धक भी होते हैं यावत् एकविध
कर्मबन्धक भी होते हैं। प्र. २०. भंते ! वे जीव क्या आहारसंज्ञोपयुक्त यावत् परिग्रह
संज्ञोपयुक्त या नो संज्ञोपयुक्त हैं ? उ. गौतम ! वे आहारसंज्ञोपयुक्त यावत् नो संज्ञोपयुक्त हैं।
इसी प्रकार सर्वत्र प्रश्नोत्तर करने चाहिए, यथा२१.वे क्रोधकषायी यावत् लोभकषायी होते हैं और अकषायी भी होते हैं। २२. वे स्त्रीवेदक, पुरुषवेदक, नपुंसकवेदक और अवेदक होते हैं। २३. वे स्त्रीवेद-बन्धक, पुरुषवेद-बन्धक, नपुंसकवेद-बन्धक या अबन्धक होते हैं। २४. वे संज्ञी होते हैं, असंज्ञी नहीं होते। २५. वे सइन्द्रिय होते हैं, अनिन्द्रिय नहीं होते। २६. इनका संचिट्ठणाकाल (संस्थितिकाल) जघन्य एक समय और उत्कृष्ट कुछ अधिक सागरोपम-शतपृथक्त्व होता है।
१७.विरया वा, अविरया वा, विरयाविरया वा।
१८.सकिरिया, नो अकिरिया। प. १९. ते णं भंते ! जीवा किं सत्तविहबंधगा,
अट्ठविहबंधगा, छव्विहबंधगा, एगविहबंधगा? उ. गोयमा ! सत्तविहबंधगा वा जाव एगविहबंधगा वा।
प. २०. ते णं भंते ! जीवा किं आहारसण्णोवउत्ता जाव
परिग्गहसन्नोवउत्ता, नो सण्णोवउत्ता? उ. गोयमा ! आहारसन्नोवउत्ता वा जाव नो सन्नोवउत्ता वा।
सव्वत्थ पुच्छा भाणियव्वा। २१.कोहकसाई वा जाव लोभकसाई वा, अकसायी वा,
२२. इत्थिवेदगा वा, पुरिसवेदगा वा, नपुंसगवेदगा वा, अवेदगा वा। २३. इथिवेदबंधगा वा, पुरिसवेदबंधगा वा, नपुंसगवेदबंधगा वा, अबंधगा वा। २४. सण्णी, नो असण्णी। २५.सइंदिया, नो अणिंदिया। २६.संचिट्ठणा जहण्णेण एक्कं समयं',
उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तं साइरेग। १. (२७) संवेहो न भण्णइ।