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युग्म अध्ययन
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णवरं-जस्स जं अस्थि तं भाणियव्वं। केवलदसणपज्जवेहिं जहा केवलनाणपज्जवेहि।
-विया. स. २५, उ.४,सु.७८-७९ १२. खुड्डजुम्मस्स भेया तेसिं लक्खणाण य परूवणं
प. कइ णं भंते ! खुड्डाजुम्मा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! चत्तारि खुड्डाजुम्मा' पण्णत्ता,तं जहा
१.कडजुम्मे,२.तेयोए,३.दावरजुम्मे, ४. कलियोए। प. सेकेणढेणं भंते ! एवं वुच्चइ
चत्तारि खुड्डा जुम्मा पण्णत्ता,तं जहा
"कडजुम्मे जाव कलियोए?" उ. गोयमा ! १. जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं
अवहीरमाणे चउपज्जवसिए। से तं खुड्डागकडजुम्मे। २. जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे
तिपज्जवसिए।से तं खुड्डागतेयोए। ३. जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे
दुपज्जवसिए। से तं खुड्डागदावरजुम्मे। ४..जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे
एगपज्जवसिए। से तं खुड्डागकलियोए। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"चत्तारि खुड्डाजुम्मा,तं जहा
"कडजुम्मे जाव कलियोए।" -विया. स. ३१, उ. १, सु.२ १३. खुड्डागकडजुम्माइ नेरइयाणं उववायाईणं परूवणंप. खुड्डागकडजुम्म नेरइया णं भंते ! कओहिंतो
उववज्जति? किं नेरइएहिंतो उववज्जंति जाव देवेहिंतो उववज्जंति?
विशेष-जिसमें जो पाया जाता हो वह कहना चाहिए। केवलदर्शन के पर्यायों का कथन केवलज्ञान के पर्यायों के समान
जानना चाहिए। १२. क्षुद्रयुग्मों के भेद और उनके लक्षणों का प्ररूपण
प्र. भंते ! क्षुद्रयुग्म कितने कहे गए हैं? । उ. गौतम ! क्षुद्रयुग्म चार प्रकार के कहे गये हैं, यथा
१. कृतयुग्म, २. योज, ३. द्वापरयुग्म, ४. कल्योज। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
क्षुद्र युग्म चार कहे गए हैं, यथा'कृतयुग्म यावत् कल्योज?' उ. गौतम ! १.जिस राशि में से चार-चार का अपहार करते हुए
अन्त में शेष चार रहे वह 'क्षुद्र कृतयुग्म' है। २. जिस राशि में से चार-चार का अपहार करते हुए अन्त
में तीन शेष रहे वह 'क्षुद्रत्र्योज' है। ३. जिस राशि में से चार-चार का अपहार करते हुए अन्त ___में दो शेष रहे वह 'क्षुद्रद्वापरयुग्म' है। ४. जिस राशि में से चार-चार का अपहार करते हुए अन्त
में एक ही शेष रहे वह 'क्षुद्रयुग्म कल्योज' है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"क्षुद्रयुग्म चार कहे गए हैं, यथा
“कृतयुग्म यावत् कल्योज।" १३. क्षुद्रकृतयुग्मादि नैरयिकों के उत्पाद आदि का प्ररूपणप्र. भंते ! क्षुद्रकृतयुग्म-राशि वाले नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न
होते हैं? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् देवों से आकर
उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! नैरयिकों में से आकर उत्पन्न नहीं होते, तिर्यञ्चयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होते हैं, देवों में से आकर उत्पन्न नहीं होते। जिस प्रकार व्युत्क्रान्ति पद में नैरयिकों का उत्पाद कहा है वही
सब यहाँ भी कहना चाहिए। प्र. भंते ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! वे चार, आठ, बारह, सोलह, संख्यात या असंख्यात
उत्पन्न होते हैं। प्र. भंते ! वे जीव किस प्रकार उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! जैसे कोई कूदने वाला पुरुष कूदता हुआ अध्यवसाय निष्पन्न क्रियासाधन द्वारा उस स्थान को छोड़कर भविष्यत्काल में अगले स्थान को प्राप्त करता है, वैसे ही जीव भी कूदने वाले की तरह कूदते हुए अध्यवसाय-निर्वर्तित क्रियासाधन (कर्मों) द्वारा पूर्वभव को छोड़कर आगामी भव को प्राप्त कर उत्पन्न होते हैं।
उ. गोयमा ! नो नेरइएहिंतो उववज्जति,
तिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति, मणुस्सेहिंतो उववजंति, नो देवेहितो उववजंति। एवं नेरइयाणं उववाओ जहा वक्कंतीए तहा भाणियव्वो।
हवा,
असंखेन्ज
"तणं भने
प. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवइया उववज्जति? उ. गोयमा ! चत्तारि वा, अट्ठ वा, बारस वा, सोलस वा,
संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा उववज्जति। प. ते णं भंते ! जीवा कहं उववजंति? उ. गोयमा ! से जहानामए-पवए पवमाणे
अज्झवसाणनिवत्तिएणं करणोवाएणं सेयकाले तं ठाणं विप्पजहित्ता पुरिमं ठाणं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ, एवामेव ते वि जीवा, पवओ विव पवमाणा अज्झवसाण निव्वत्तिएणं करणोवाएणं सेयकाले तं भवं विप्पजहित्ता
पुरिमं भवं उवसंपज्जित्ताणं विहरंति३। १. लघु संख्या वाली राशि विशेष को "क्षुद्रयुग्म" कहते हैं। २. पण्ण.प.६,सु.६३९,१-२६
३. इसी सन्दर्भ में (विया. स. २५, उ.८, सु.३) का विशेष वर्णन व्युत्क्रान्ति
अध्ययन में देखें।