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प. वालुयप्पभपुढवि-काउलेस्स-सुक्कपक्खिय-खुड्डाग
कलियोगनेरइया णं भंते !कओहिंतो उववति?
द्रव्यानुयोग-(३) प्र. भंते ! क्षुद्रकल्योज राशि वाले वालुकाप्रभापृथ्वी के
कापोतलेश्यी शुक्लपाक्षिक नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न
होते हैं? उ. गौतम ! इनका सारा कथन औधिक गमक के समान परप्रयोग
से उत्पन्न नहीं होते हैं पर्यन्त कहना चाहिए। ये सब मिलाकर अट्ठाईस उद्देशक हुए।
उ. गोयमा ! एवं जहेव ओहिओ गमओ तहेव निरवसेसं जाव
नो परप्पयोगेणं उववज्जति। सव्वे वि एए अट्ठावीसं उद्देसगा।
-विया. स.३१, उ.२५-२८,सु.१ २०. खुड्डाग कडजुम्माइ पडुच्च नेरइयाणं उव्वट्टणाइ परूवणं-
प. खुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते ! अणंतर उव्वट्टित्ता
कहिं गच्छंति, कहिं उववजंति?
किं नेरइएसु उववज्जति जाव देवेसु उववजंति?
उ. गोयमा ! उववट्टणा जहा वक्कंतीए।
प. ते णं भंते ! जीवा एगसमए णं केवइया उव्वटंति? उ. गोयमा ! चत्तारि वा, अट्ठ वा, बारस वा, सोलस वा,
संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा उव्वटंति। प. ते णं भंते ! जीवा कह उव्वति ? उ. गोयमा ! से जहानामए पवए पवमाणे अज्झवसाण
निवत्तिएणं करणोवाएणं सेयकाले तं ठाणं विप्पजहित्ता पुरिमं ठाणं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ, एवामेव ते वि जीवा पवओविव पवमाणा अज्झवसाणनिव्वत्तिएणं करणोवाएणं सेयकाले तं भवं विप्पजहित्ता पुरिमं भवं उवसंपज्जित्ताणं विहरंति। एवं सो चेव गमओ जाव आयप्पयोगेणं उव्वटंति, नो
परप्पयोगेणं उव्वटति। प. रयणप्पभापुढवि खुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते !
एगसमएणं केवइया उव्वटंति? उ. गोयमा ! चत्तारि वा, अट्ठ वा, बारस वा, सोलस वा,
संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा उब्बट्टति। एवं जाव अहेसत्तमाए। खुड्डागतेयोग-खुड्डाग दावरजुम्म-खुड्डाग कलियोगे वि एवं चेव। णवरं-परिमाणं जाणियव्वं । सेसंतंचेव।
-विया. स.३२, उ.१, सु.१-६ एवं एएणं कमेणं जहेव भगवइए उववायसए अट्ठावीसं उदेसगा भणिया, तहेव उव्वट्टणासए वि अट्ठावीसं उद्देसगा भाणियव्वा निरवसेसा। णवर-उव्वट्टति त्ति अभिलावो भाणियव्यो।
२०. क्षुद्रकृतयुग्मादि की अपेक्षा नैरयिकों के उदवर्तनादि का
प्ररूपणप्र. भंते ! क्षुद्रकृतयुग्मराशि वाले नैरयिक कहाँ से उद्वर्तित
होकर (मर कर) कहाँ जाते हैं और कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् देवों से आकर
उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! इनका उद्वर्तन व्युत्क्रान्तिक पद के अनुसार जानना
चाहिए। प्र. भंते ! वे जीव एक समय में कितने उद्वर्तित होते (मरते) हैं ? उ. गौतम !(वे एक समय में) चार, आठ, बारह, सोलह, संख्यात
या असंख्यात उद्वर्तित होते हैं। प्र. भंते ! वे जीव किस प्रकार उद्वर्तित होते हैं ? उ. गौतम ! जैसे कोई कूदने वाला पुरुष कूदता हुआ अध्यवसाय
निष्पन्न क्रिया साधन द्वारा उस स्थान को छोड़कर भविष्यत्काल में अगले स्थान को प्राप्त करता है, वैसे ही जीव भी कूदने वाले की तरह कूदते हुए अध्यवसाय निष्पन्न क्रियासाधन (कर्मों) द्वारा पूर्वभव को छोड़कर आगामी भव को प्राप्त कर उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार का आलापक वे आत्मप्रयोग से उद्वर्तित होते हैं
परप्रयोग से नहीं होते पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. भंते ! क्षुद्र कृतयुग्म-राशि वाले रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक एक
समय में कितने उद्वर्तित होते (मरते) हैं ? उ. गौतम ! (वे एक समय में) चार, आठ, बारह, सोलह,
संख्यात या असंख्यात उद्वर्तित होते हैं। इसी प्रकार अधःसप्तमपृथ्वी पर्यन्त उद्वर्तन जानना चाहिए। क्षुद्रत्र्योज, क्षुद्रद्वापरयुग्म और क्षुद्रकल्योज के लिए भी इसी प्रकार जानना चाहिए। विशेष-इनका परिमाण पूर्ववत् पृथक्-पृथक् कहना चाहिए। शेष सब कथन पूर्ववत् है। इसी प्रकार इसी क्रम से पूर्वोक्त उपपातशतक के अट्ठाईस उद्देशकों के समान उद्वर्तनशतक के भी अट्ठाईस उद्देशक सम्पूर्ण जानने चाहिए। विशेष-'उत्पन्न होते हैं' के स्थान पर 'उद्वर्तन करते हैं। यह कहना चाहिए। शेष सब पूर्ववत् है।
सेसंतं चेव। .
-विया.स.३२, उ.२-२८