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द्रव्यानुयोग-(३) नीललेश्या का भी कथन इसी प्रकार है।
कापोतलेश्या का भी कथन इसी प्रकार है। २१. द्वीप समुद्रों में परस्पर जीवों के जन्म मरण का प्ररूपण
प्र. भंते ! जंबूद्वीप द्वीप में मरकर जीव क्या लवणसमुद्र में उत्पन्न __ होते हैं? उ. गौतम ! कोई उत्पन्न होते हैं और कोई उत्पन्न नहीं होते हैं।
प्र. भंते ! लवणसमुद्र में मरकर जीव क्या जम्बूद्वीप द्वीप में उत्पन्न
होते हैं? उ. गौतम ! कोई उत्पन्न होते हैं और कोई उत्पन्न नहीं होते हैं।
प्र. भंते ! लवण समुद्र में मरकर जीव क्या धातकीखण्ड में उत्पन्न
होते हैं? उ. गौतम ! कोई उत्पन्न होते हैं और कोई उत्पन्न नहीं होते हैं।
प्र. भंते ! धातकीखण्ड द्वीप में मरकर जीव क्या लवण समुद्र में
उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! कोई उत्पन्न होते हैं और कोई उत्पन्न नहीं होते हैं।
प्र. भंते ! धातकी खण्ड द्वीप में जीव मरकर क्या कालोद समुद्र
में उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! कोई उत्पन्न होते हैं और कोई उत्पन्न नहीं होते हैं।
नीललेस्से विएवं चेव।
काउलेस्से विएवं चेव। -विया. स. ३४, उ. ३-५, सु. २,३ २१. दीव-समुद्दाइसु परोप्परं जीवाणं जम्म-मरण परूवणंप. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे जीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता
लवण-समुद्दे पच्चायंति? उ. गोयमा ! अत्थेगइया पच्चायंति, अत्थेगइया नो
पच्चायंति। प. लवणे णं भंते ! समुद्दे जीवा उदाइत्ता-उद्दाइत्ता
जंबुद्दीवे दीवे पच्चायंति? उ. गोयमा ! अत्थेगइया पच्चायंति, अत्थेगइया नो पच्चायति।
-जीवा. पडि.३, सु. १४६ प. लवणे णं भंते ! समुद्दे जीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता
धायइसंडे दीवे पच्चायंति? उ. गोयमा ! अत्थेगइया पच्चायंति, अत्थेगइया नो
पच्चायंति। प. धायइसंडे णं भंते ! दीवे जीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता
लवणे समुद्दे पच्चायंति? उ. गोयमा ! अत्थेगइया पच्चायंति, अत्थेगइया नो पच्चायंति।
-जीवा. पडि. ३, सु. १५४ प. धायइसंडे णं भंते ! दीवे जीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता
कालोए समुद्दे पच्चायंति? उ. गोयमा ! अत्थेगइया पच्चायंति, अत्थेगइया नो
पच्चायंति। प. कालोए णं भंते ! समुद्दे जीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता
धायइसंडे दीवे पच्चायंति? | उ. गोयमा ! अत्यंगइया पच्चायंति, अत्थेगइया नो पच्चायति।
-जीवा. पडि.३, सु. १७४ प. कालोए णं भंते ! समुद्दे जीवा उदाइत्ता-उद्दाइत्ता
पुक्खरवरदीवे पच्चायंति? उ. गोयमा ! अत्थेगइया पच्चायंति, अत्थेगइया नो
पच्चायंति? प. पुक्खरवरदीवे णं भंते ! जीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता
कालोए समुद्दे पच्चायंति? उ. गोयमा ! अत्थेगइया पच्चायंति, अत्थेगइया नो
पच्चायंति। एवं पुक्खरोदसमुद्दे वि, एवं वरुणवराइदीवेसु जाव सयंभूरमणाइसमुद्दे उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता जीवा परोप्परं पच्चायति।
-जीवा. पडि. ३, सु. १७५-१७६ (अ) २२. मरणस्स भेयप्पभेय परूवणं
सत्तरसविहे मरणे पण्णत्ते,तं जहा१. आवीईमरणे, २. ओहिमरणे, ३. आयंतियमरणे, ४. वलयमरणे, ५. वसट्टमरणे, ६. अंतोसल्लमरणे,
प्र. भंते ! कालोद समुद्र में जीव मरकर क्या धातकी खण्ड द्वीप
में उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! कोई उत्पन्न होते हैं और कोई उत्पन्न नहीं होते हैं।
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प्र. भंते ! कालोद समुद्र में जीव मरकर क्या पुष्करवरद्वीप में
उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! कोई उत्पन्न होते हैं और कोई उत्पन्न नहीं होते हैं।
प्र. भंते ! पुष्करवरद्वीप में जीव मरकर क्या कालोद समुद्र में
उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! कोई उत्पन्न होते हैं और कोई उत्पन्न नहीं होते हैं।
इसी प्रकार पुष्करोद समुद्र के लिए जानना चाहिए। इसी प्रकार वरुणवर आदि द्वीपों से स्वयंभूरमणादि समुद्रों पर्यन्त जीव मर-मरकर परस्पर एक दूसरे में उत्पन्न होते हैं।
२२. मरण के भेद-प्रभेदों का प्ररूपण
सत्रह प्रकार का मरण कहा गया है, यथा१. आवीचि-मरण, २. अवधि-मरण, ३. आत्यन्तिक मरण, ४. वलय-मरण, ५. वशार्त-मरण, ६. अन्तःशल्य-मरण,