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एवं पज्जत्त सुहुम पुढविकाइयत्ताए वि ।
एवं जाव पज्जत हुम तेउकाइयत्ताए ।
प. अपज्जत्तसुमपुढविकाइए णं भंते! अहेलोय खेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते समोहए समोहणित्ता जे भविए समयखेत्ते अपजत्तबावर ते उकाइयत्ताए उववज्जित्तए से णं भंते! कइ समइएणं विग्गहेण उववज्जेज्जा ?
उ. गोयमा ! दुसमइएण वा तिसमइएण वा विग्गणं उववज्जेज्जा ।
7.
प से केणट्ठेणं भंते ! एवं वुच्चइ
“दुसमइएण वा, तिसमइएण वा विग्गहेणं उववज्जेज्जा ?
उ एवं खलु गोयमा ! मए सत्त सेढीओ पन्नत्ताओ, तं जहा१. उज्जुआयता जाव ७. अद्धचक्कवाला । १. एगओवंकाए सेढीए उववज्जमाणे दुसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा,
२. दुहओवंकाए सेढीए उववज्जमाणे तिसमइएणं विग्गणं उपयजेज्जा,
से तैणणं गोयमा ! एवं बुच्चइ"दुसमइएण वा, तिसमइएण वा विग्गणं उववज्जेज्जा ।
एवं पज्जत्तएसु वि बायरतेउकाइएसु वि उववाएयव्वो ।
बाउक्काइय-वणस्सइकाइयत्ताए चउक्कएणं भेएणं जहा आउकाइयत्ताए तहेब उदचाएयच्यो।
एवं जहा अपज्जत्तसुमपुढविकाइयस्स गमओ भणिओ एवं पज्जत्तमहमपुढविकाइयस्स वि भाणियव्यो तहेब वीसाए ठाणेसु उववाएयव्यो।
अहेलोयखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेते समोहए समोहणिता जाव विग्गणं उदयज्जेज्जा,
एवं बायरपुढवीकाइयस्स वि अपज्जत्तगस्स पज्जत्तगस्स भाणियव्वं । (८०)
एवं आउकाइयस्स चउव्हिल्स वि भाणिपव्यं । (१८०)
सुहुमते काइयस्स दुविहस्स वि एवं चैव। (२००)
प. अपजत्तवायरतेउकाइए णं भंते! समयखेत्ते समोहए, समोहणित्ता जे भविए उढलोयखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते अपजत्तमपुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए
से णं भंते! कइ समइएण विग्गहेण उववज्जेज्जा ? उ. गोवमा ! दुसमइएण वा तिसमइएण वा विग्गहेणं उववज्जेज्जा ।
"
द्रव्यानुयोग - ( ३ )
इसी प्रकार पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक रूप में उत्पन्न होने वाले के लिए भी कहना चाहिए।
इसी प्रकार यावत् पर्याप्त सूक्ष्म तेजस्कायिक रूप में उत्पन्न होने वाले के लिए भी जानना चाहिए।
प्र. भंते! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव अधोलोकक्षेत्र की अनाडी के बाहर के क्षेत्र में मरणसमुद्घात करके मनुष्य क्षेत्र में अपर्याप्त बादर तेजस्कायिक रूप से उत्पन्न होने योग्य है, तो भंते ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ?
उ. गौतम ! वह दो समय या तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है।
प्र. भंते! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
" वह दो समय या तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ?
उ. गौतम ! मैंने सात श्रेणियाँ कही हैं, यथा१. ऋज्वायता यावत् ७. अर्द्धचक्रवाला।
१. एकतोवक्रा श्रेणी से उत्पन्न होने पर दो समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है,
२. उभयतोवक्रा श्रेणी से उत्पन्न होने पर तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है।
इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि
"वह दो समय या तीन समय की विग्रह गति से उत्पन्न होता है।"
इसी प्रकार पर्याप्त बादरतेजस्कायिक जीवों का भी उपपात जानना चाहिए।
जिस प्रकार अप्कायिक रूप में उत्पन्न होने का कथन किया है। उसी प्रकार वायुकायिक और वनस्पतिकायिक के चार-चार भेदों के उपपात का कथन करना चाहिए।
जिस प्रकार अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक का आलापक कहा उसी प्रकार पर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक का आलापक और पूर्वोक्त बीस स्थानों में उपपात कहना चाहिए।
जिस प्रकार अधोलोकक्षेत्र की त्रसनाडी के बाहर के क्षेत्र में मरणसमुद्घात करके यावत् विग्रहगति में उपपात कहा है, उसी प्रकार पर्याप्त और अपर्याप्त बादर पृथ्वीकायिक के उपपात का भी कथन करना चाहिए। (८०)
चारों प्रकार के अप्कायिक जीवों का कथन भी इसी प्रकार करना चाहिए। (१८०)
दोनों प्रकार के ( पर्याप्त और अपर्याप्त) सूक्ष्मतेजस्कायिक जीव के उपपात का कथन भी इसी प्रकार है। (२००) प्र. भंते! यदि अपर्याप्त बादरतेजस्कायिक जीव मनुष्य क्षेत्र में मरणसमुद्घात करके ऊर्ध्वलोकक्षेत्र की त्रसनाडी से बाहर के क्षेत्र में अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक के रूप में उत्पन्न होने योग्य हो तो
भंते ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ?
उ. गौतम ! वह दो समय या तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न
होता है।