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गर्भ अध्ययन
२. दुहओवंकाए सेढीए उववज्जमाणे तिसमइएणं विग्गहेणं उबवजेज्जा ।
से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ
“दुसमइएण वा, तिसमइएण वा विग्गहेणं उववज्जेज्जा ।” एवं पज्जत्तएसु वि बायर उकाइए ।
सेसं जहा रयणप्पभाए।
जे वि बायर उकाइया अपज्जत्तगा य, पज्जत्तगा य समयखेत्ते समोहया समोहणित्ता,
दोच्चाए पुढवीए पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते
पुढविकाइए चउव्विसु,
आउकाइएसु चउव्विहेसु,
ते उकाइएस दुविसु, बाउकाइएस चउव्हेिसु,
वणस्सइकाइएस चउव्विहेसु उववज्जति
ते वि एवं चैव दुसमइएण वा विग्गहेणं उबवाएयव्या ।
बायरतेउकाइया अपज्जत्तगा पज्जत्तगा य जाहे तेसु चेव उववज्जति ताहे,
जहेव रयणप्पभाए तहेव एगसमइय- दुसमइय-तिसमइय विग्गहा भाणियव्या
सेसं जहेब रयणप्पभाए तहेव निरवसेसं ।
जहा सक्करण्यभाए बत्तव्यया भणिया एवं जाव अहेसत्तमाए भाणियय्या ।
प. अपज्जत्तसुमपुढविकाइए णं भंते! अहे लोयखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते समोहए समोहणिता जे भविए उड्ढलोयखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते अपज्जत्तसुहुमपुढविकाइयत्ताए उवबज्जित्तए
से णं भंते! कइ समइएणं विग्गहेणं उवयज्जेज्जा ?
उ. गोयमा ! तिसमइएण वा, चउसमइएण वा विग्गणं उववज्जेज्जा ।
प. से केणट्ठेणं भंते ! एवं वुच्चइ
"तिसमइएण वा, चउसमइएण वा विग्गहेणं
उववज्जेज्जा ?"
उ. गोयमा ! अपज्जत्तसुमपुढविकाइए
णं
अहेलोयखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते समोहए, समोहणिता जे भविए उड्ढलोयखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते अपज्जत्तसुमपुढविकाइयत्ताए एगपवरम्मि अणुसेद्धिं उववज्जित्तए से णं तिसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा,
जे भविए विसेद्धिं उववज्जित्तए से णं चउसमइएणं विग्गणं उववज्जेज्जा ।
से तेणट्ठेण गोयमा ! एवं चुच्चइ
"तिसमइएण उबवज्जेज्जा ।"
वा चउसमइएण वा विग्गहेणं
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२. जो उभयतोवक्रा श्रेणी से उत्पन्न होता है वह तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है।
इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि
"वह दो या तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ।" इसी प्रकार पर्याप्त बादर तेजस्कायिक रूप से उत्पन्न होने वाले का कथन करना चाहिए।
शेष सब कथन रत्नप्रमापृथ्वी के समान है।
बारस्कायिक अपर्याप्त और पर्याप्त जीव मनुष्य क्षेत्र में मरणसमुद्घात करके शर्कराप्रभापृथ्वी के पश्चिमी चरमान्त में,
चारों प्रकार के पृथ्वीकायिक जीवों में,
चारों प्रकार के अष्कायिक जीवों में,
दो प्रकार के तेजस्कायिक जीवों में,
चार प्रकार के वायुकायिक जीवों में,
चार प्रकार के वनस्पतिकायिक जीवों में उत्पन्न होते हैं। उनका भी दो या तीन समय की विग्रहगति से उपपात कहना चाहिए।
जब पर्याप्त और अपर्याप्त बादर तेजस्कायिक जीव उन्हीं में उत्पन्न होते हैं तब उनके लिए
रत्नप्रभापृथ्वी के कथनानुसार एक समय, दो समय या तीन समय की विग्रहगति कहनी चाहिए।
शेष सब कथन रत्नप्रभापृथ्वी के समान जानना चाहिए । जिस प्रकार शर्कराप्रमापृथ्वी के लिए कहा उसी प्रकार अधः सप्तमपृथ्वी पर्यन्त जानना चाहिए।
प्र. भंते! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव अधोलोक क्षेत्र की नाडी के बाहर के क्षेत्र में मरण समुद्धात करके ऊर्ध्वलोक नाडी के बाहर के क्षेत्र में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक रूप में उत्पन्न होने योग्य हो तो
की
भंते! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ?
उ. गौतम ! वह तीन समय या चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है।
प्र. भंते! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
" वह जीव तीन या चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ?"
उ. गौतम ! जो अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव अधोलोक क्षेत्र की नाडी के बाहर के क्षेत्र में मरणसमुद्घात करके ऊर्ध्वलोक क्षेत्र की त्रसनाडी के बाहर के क्षेत्र में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकाधिक के रूप में एक प्रतर की अनुश्रेणी (समश्रेणी) में जो उत्पन्न होने योग्य है वह तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है।
जो विश्रेणी में उत्पन्न होने योग्य है वह चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है।
इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि
"वह तीन समय या चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है।"