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से णं भंते ! कइ समइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! सेसं तहेव जाव से तेणठेणं जाव विग्गहेणं
उववज्जेज्जा। (२४0 +00+00 = ४00)
प. अपज्जत्तसुहमपुढविकाइए णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए
पुढवीए पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते समोहए समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरथिमिल्ले चरिमंते अपज्जत्तसुहुमपुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए से णं
भंते ! कइ समइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! सेसं तहेव निरवसेसं।
एवं जहेव पुरथिमिल्ले चरिमंते सव्वपदेसु वि समोहया पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य उववाइया, जे य समयखेत्ते समोहया पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य उववाइया, एवं एएणं चेव कमेणं पच्चथिमिल्ले चरिमंते समयखेत्तेय समोहया पुरथिमिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य उववाएयव्या तेणेव गमएणं।(४00=000) एवं एएणं गमएणं दाहिणिल्ले चरिमंते समोहयाणं समयखेत्ते य, उत्तरिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य उववाओ। (४00 = १२००) एवं चेव उत्तरिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य समोहया, दाहिणिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य उववाएयव्वा तेणेव गमएणं। (४00 = १६००) अपज्जत्तसुहमपुढविकाइए णं भंते ! सक्करप्पभाए पुढवीए पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए सक्करप्पभाए पुढवीए पच्चथिमिल्ले चरिमंते अपज्जत्तसुहुमपुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए से णं भंते !
कइ समइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! एवं जहेव रयणप्पभाए।
एवं एएणं कमेणं जाव पज्जत्तएसु सुहुमतेउकाइएसु।
द्रव्यानुयोग-(३) भंते ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! इस कारण से वह तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न
होता है पर्यंत समग्र कथन करना चाहिए। (२४0+ 00 + -
८० = ४00) प्र. भंते ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव रत्नप्रभापृथ्वी के
पश्चिमी-चरमान्त में मरण समुद्घात करके रत्नप्रभापृथ्वी के पूर्वी चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक रूप से उत्पन्न होने योग्य हो तो
भन्ते ! कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? उ. गौतम ! पूर्ववत् समस्त कथन करना चाहिए।
जिस प्रकार पूर्वी-चरमान्त के सभी पदों में समुद्घात करके पश्चिमी चरमान्त में और मनुष्यक्षेत्र में उपपात कहा उसी प्रकार मनुष्यक्षेत्र में समुद्घात पूर्वक पश्चिमी चरमान्त में और मनुष्यक्षेत्र में उपपात कहना चाहिए। इसी प्रकार इसी क्रम से पश्चिमी चरमान्त में और मनुष्य क्षेत्र में समुद्घात करके पूर्वी चरमान्त में और मनुष्यक्षेत्र में उसी आलापक से उपपात होता है कहना चाहिए।४00 30001 इसी प्रकार इसी आलापक से दक्षिण के चरमान्त में समुद्घात करके मनुष्य क्षेत्र में और उत्तर के चरमान्त में समुद्घात करके मनुष्य क्षेत्र में उपपात कहना चाहिए।(४00 =१२००) इसी प्रकार उत्तरी चरमान्त में समुद्घात करके मनुष्य क्षेत्र में एवं दक्षिणी चरमान्त में समुद्घात करके मनुष्यक्षेत्र में
उपपात कहना चाहिए। (४00 = १६००) प्र. भंते ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव शर्कराप्रभापृथ्वी के
पूर्वी चरमान्त में मरणसमुद्घात करके शर्कराप्रभापृथ्वी के पश्चिमी चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक के रूप से उत्पन्न होने योग्य हो तो-भंते ! वह कितने समय की विग्रहगति
से उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! रत्नप्रभापृथ्वी के समान यहां भी कथन करना चाहिए।
इसी प्रकार इसी क्रम से पर्याप्त सूक्ष्म तेजस्कायिक पर्यन्त
कहना चाहिए। प्र. भंते ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव शर्कराप्रभापृथ्वी के
पूर्वी चरमान्त में मरणसमुद्घात करके मनुष्य क्षेत्र के अपर्याप्त बादर तेजस्कायिक रूप में उत्पन्न होने योग्य हो तो
प. अपज्जत्तसुहमपुढविकाइए णं भंते ! सक्करप्पभाए
पुढवीए पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए समयखेत्ते अपज्जत्तबायरतेउकाइयत्ताए उववज्जित्तए,
से णं भंते ! कइ समइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! दुसमइएण वा, तिसमइएण वा विग्गहेणं
उववज्जिज्जा। प. से केणंढेणं भंते ! एवं वुच्चइ
"दुसमइएण वा, तिसमइएण वा विग्गहेणं
उववज्जेज्जा?" उ. एवं खलु गोयमा ! मए सत्त सेढीओ पन्नत्ताओ,तं जहा१. उज्जुआयता जाव ७. अद्धचक्कवाला। १. एगओवंकाए सेढीए उववज्जमाणे दुसमइएणं
विग्गहेणं उववज्जेज्जा,
भंते ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! वह दो या तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न
होता है। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
"वह दो या तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ?"
उ. गौतम ! मैंने सात श्रेणियां कही गई हैं, यथा
१. ऋज्वायता यावत् ७. अर्द्धचक्रवाला। १. जो एकतोवक्रा श्रेणी से उत्पन्न होता है वह दो समय की
विग्रहगति से उत्पन्न होता है।