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४. गेलनपुट्ठा, ५. दोमणंसिया। इच्चेएहिं पंचहिं ठाणेहिं इत्थी पुरिसेण सद्धिं संवसमाणी
विगब्भ नोधरेज्जा। २. पंचहिं ठाणेहिं इत्थी पुरिसेण सद्धिं संवसमाणी वि गब्भं नो
धरेज्जा,तंजहा१. निच्चोउया, २. अणोउया, ३. वावन्नसोया, ४. वाविद्धसोया, ५. अणंगपडिसेविणी। इच्चेएहिं पंचहि ठाणेहिं इत्थी पुरिसेण सद्धिं संवसमाणी
वि गब्मं नोधरेज्जा। ३. पंचहि ठाणेहिं इत्थी पुरिसेण सद्धिं संवसमाणी वि गब्भं नो
धरेज्जा,तं जहा१. उउम्मिणो णिगामपडिसेविणी या विभवइ
२. समागया वा से सुक्कपोग्गला पडिविद्धंसंति, ३. उदिने वा से पित्तसोणिए, ४. पुरा वा देवकम्मुणा, ५. पुत्तफले वा नो निविढे भवइ। इच्चेएहिं पंचहिं ठाणेहिं इत्थी पुरिसेण सद्धिं संवसमाणी
वि गब्भ नो धरेज्जा। -ठाणं अ. ५, उ. २, सु. ४१६ ४. माणुसी गब्मस्स चउव्विहत्तं
चत्तारि मणुस्सीगब्भा पण्णत्ता,तं जहा१. इत्थित्ताए, २. पुरिसत्ताए, ३. णपुंसगत्ताए, ४. बिंवत्ताए गाहाओ-अप्पं सुक्कं बहुओयं, इत्थी तत्थ पजायइ।
अप्पं ओयं बहु सुक्कं, पुरिसो तत्थ पजायइ॥ दोण्हं पि रत्तसुक्काणं, तुल्लभावेणपुंसओ। इत्थीओयसमायोगे, बिंबं तत्थ पजायइ ।।
-ठाणं.अ.४, उ.४, सु.३७७ ५. गब्मगयजीवस्स नेरइय-देवेसु उववज्जण कारणाणि परूवणं-
द्रव्यानुयोग-(३) ४. रोग से स्पृष्ट हो तो ५. दौर्मनस्क (शोकग्रस्त) हो तो इन पाँच कारणों से स्त्री पुरुष का सहवास करती हुई भी गर्भ
को धारण नहीं करती है। २. पाँच कारणों से स्त्री पुरुष का सहवास करती हुई भी गर्भ को
धारण नहीं करती है, यथा१. सदा ऋतुमती रहने से, २. कभी भी ऋतुमती न होने से, ३. गर्भाशय नष्ट हो जाने से, ४. गर्भाशय की शक्ति क्षीण हो जाने से, ५. अप्राकृतिक काम-क्रीड़ा करने से, इन पाँच कारणों से स्त्री पुरुष का सहवास करती हुई भी गर्भ को धारण नहीं करती है। पाँच कारणों से स्त्री पुरुष का सहवास करती हुई भी गर्भ को धारण नहीं करती है, यथा१. ऋतुकाल में वीर्यपात होने तक पुरुष का प्रतिसेवन नहीं
करने से, २. समागत शुक्र-पुद्गलों के विध्वस्त हो जाने से, ३. पित्त-प्रधान शोणित (रक्त) के उदीर्ण हो जाने से, ४. देव प्रयोग (श्राप आदि) से, ५. पुत्र फलदायी कर्म के अर्जित न होने से । इन पाँच कारणों से स्त्री पुरुष का सहवास करती हुई भी गर्भ
को धारण नहीं करती है। ४. मानुषी गर्भ के चार प्रकारों का प्ररूपण
मनुष्य स्त्रियों के गर्भ चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. स्त्री के रूप में, २. पुरुष के रूप में, ३. नपुंसक के रूप में, ४. बिम्ब विचित्र ( आकृति) के रूप में, गाथार्थ-शुक्र अल्प और रज अधिक होने पर स्त्री पैदा होती है।
ओज अल्प और शुक्र अधिक होने पर पुरुष पैदा होता है। रक्त (ओज) और शुक्र दोनों के समान होने पर नपुंसक पैदा होता है। (वायु-विकार के कारण) स्त्री रज के स्थिर होने पर बिंब
होता है। ५. गर्भगत जीव के नरक और देवों में उत्पन्न होने के कारणों का
प्ररूपणप्र. भंते ! गर्भ में रहा हुआ जीव क्या नारकों में उत्पन्न होता है ? उ. गौतम ! कोई उत्पन्न होता है और कोई उत्पन्न नहीं होता है।
प. जीवेणं भंते ! गब्भगए समाणे नेरइएसु उववज्जेज्जा? उ. पोयमा ! अत्येगइए उववज्जेज्जा, अत्थेगइए नो
उववज्जेज्जा। प. सेकेणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ
'गब्भगए समाणे जीवे नेरइएस अत्थेगइए उववज्जेज्जा, अत्यंगइएनो उववज्जेज्जा?'
प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
"गर्भ में रहा हुआ कोई जीव नैरयिकों में उत्पन्न होता है और कोई जीव उत्पन्न नहीं होता है?"