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[१५] निकलता है कि वारम्वार यहाँका स्मरण नही आता होवे।"
-(पत्रांक:८; कलकत्ता | २८-६-५३) 0"अरे विकल्प ! यदि तुझे तेरी आयु प्रिय है तो अन्य सबको गोण कर व गुरुदेवके संगमे ले चल, वरना उनका दिया हुआ वीतरागी अस्त्र शीघ्र ही तेरा अन्त कर डालेगा।"
-(पत्रांक : ९, कलकत्ता / ५-७-५३) D"रह-रह कर विकल्प होता रहता है कि कमसे कम एक-दो वर्ष निरन्तर अलौकिक सत्पुरुषके सहवासमे रहना होवे, परन्तु प्रारव्य अभी ऐसा नहीं दिखता है।"
- ( पत्रांक : १४; कलकत्ता / १-२-५४ ) 0"पुण्ययोग नही है, वहाँ (- सोनगढ़ ) का संयोग नही है, अरुचिकर वातावरणका योग है । महान् अफ़सोस है।"
-(पत्रांक : १५; कलकत्ता | २५-६-५४) 0"हे प्रभो ! शीघ्र इघरसे निवृत्ति होकर गुरु-चरणोमे रहना होवे, जिन्होने अखण्ड गुरुवासमे चरना सिखाया है, यह ही विनती।"
- (पत्रांक : २७; कलकत्ता / ९-४-६२) * निवृत्ति-भावना :
वस्तुतः निवृत्तिकी तीन अभिलाषा सर्व ज्ञानी पुरुषोको निरन्तर वर्तती ही है। श्री सोगानीजी भी निवृत्ति के लिए सतत छटपटाते रहे, निवृत्तिके लिए योजना घड़ते परन्तु वैसे पुण्ययोगके अभावमे वे फलित न हो पाती; तथापि निवृत्तिकी भावना कितनी बलवती थी और उसकी वार्ता भी उन्हे कितनी रुचिकर थी, उसका परिचय निम्न उद्धरणसे स्पष्ट मिलता है :
D"आपने लिखा था कि अव निवृत्ति काल पका, यह पढ़कर विजलीके वेगकी तरह आनन्दकी लहर आई थी; कारण पूर्वे निवृत्ति ही विकल्परूपसे निश्चये भजी थी; ऐसा पूरा प्रतीतिमे आता है।"
- ( पत्रांक : २९ कलकत्ता | ३-९-६२)