________________
७०
द्रव्यदृष्टि-प्रकाश (भाग - २) मोक्षको कर्ता है । ( - इसका विवरण : ) वस्तु तो वस्तु है । सो वस्तु ज्ञायक चैतन्य पदार्थ - उसके अनुभवरूप श्रद्धान, ज्ञान और शान्ति सो अनुभूति - पर्याय प्रगट होनेपर जो आत्माकी व्यवहारपर्याय, मोक्षमार्गकी पर्याय, उसको व्यवहारतत्त्व कहनेमे आता है । शुद्धोपयोगसे परिणत यह भी पर्याय अर्थात् व्यवहार आत्मा है । शुद्धस्वभावमें एकलक्ष करके, शुद्धोपयोगरूप पर्यायरूप परिणमकर, मोक्षको कर्ता है सो भी व्यवहार है । मोक्षपर्याय भी व्यवहार है । द्रव्य जो है निश्चय ध्रुव, उसरे बन्ध, मोक्ष, मोक्षमार्ग नही है । निश्चयनयकी सत्वस्तु त्रिकाल एकरूप है। ____भाई ! ध्रुवतत्त्व, त्रिकाल एकरूप सदृश तत्त्व है, उसमे बन्ध-मोक्ष नहीं है । मात्र एक समयकी पर्यायमे - उत्पाद-व्ययरूप पर्यायरूप व्यवहार में, शुद्धात्मानुभूतिके अभावसे, शुभाशुभ परिणमता है और जीवन-मरण करता है; और यही द्रव्य स्वकी शुद्धात्मानुभूतिके कालमें, शुद्धोपयोगरूप परिणमन करके मोक्षको करता है। मोक्षकी पर्यायको कार्यरूप करता है, सो मोक्ष भी व्यवहारपर्याय है । निश्चयद्रव्यमे पर्याय नहीं है। इस प्रकार अवस्थामें होनेपर भी शुद्धपारिणामिकपरमभावग्राहक शुद्धनयसे आत्मा बन्ध
और मोक्षका कर्ता नही है । शुद्ध पारिणामिकभाव, ध्रुव...ध्रुव...ध्रुव, एक समयकी अवस्था, पर्याय, उत्पाद-व्यय बिनाका तत्त्व है । निश्चयआत्मा बन्ध-मोक्षका कर्ता नही । पर्यायरूप व्यवहार आत्मा, शुभाशुभ बन्धको करे और पर्यायमे अनुभूतिसे मोक्षको करे । वस्तु सदृश रहनेवाली चीज़ चैतन्य...चैतन्य...चैतन्य, एकरूप रहनेवाली वस्तु सो निश्चयनयका विषय है - यही निश्चयतत्त्व है । अवस्थाका उत्पन्न होना और अवस्थाका नाश होना, यह व्यवहारनयका विषय है - यह पर्यायतत्त्व है । यहाँ परद्रव्यके साथ कुछ सम्बन्ध नहीं है, इस प्रकारके व्यवहारकी बात नहीं है । निश्चय ध्रुवमे पर्याय नही है, एकला ध्रुव है, सदृशभाव, शुद्ध पारिणामिकभाव, निकाल एकरूप, अनन्तगुणका एकरूप - उसमें बन्ध नहीं है, मोक्ष नही है और मोक्षका मार्ग नही है । वस्तु तत्त्व है, उसका दो प्रकार - एक शाश्वत रहनेवाला सदृश है और एक पर्यायरूप होनेहाला विसदृश है।