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द्रव्यदृष्टि-प्रकाश (भाग - २) निर्णय किया तब निमित्त कहनेमे आता है। जिस कालमे अविनाशी ज्ञान होता है उस कालमे निमित्तका सवाल (प्रश्न) ही नही रहता । निर्णय सामान्यके प्रति ढल गया, तत्काल संसार छूट गया । संसार छूटनेका कारण द्रव्य स्वयं है। निर्णय होनेके बाद निमित्त कहनेमे आता है। ध्रुवशक्ति साध्य है, मोक्ष साध्य नही है। मोक्ष प्रगट होता है । प्रगट-अप्रगट पर्यायदृष्टिमे होता है । ध्रुव नित्य प्रगट है। प्रगट-अप्रगटका सवाल ही वस्तुमे नही । प्रगट-अप्रगट अवस्थामे है । वस्तु ध्रुव तो नित्य प्रगट ही है । साध्य वस्तु, साधन निर्णय (व्यवहार) । ध्रुव लक्षमे आने पर सहज निर्मल अवस्था प्रगटती है। पुरुषार्थ करना नहीं पड़ता, सहज हो जाता है। आश्रय पर्यायका कैसा ? आश्रय स्वभावका ! ध्रुव और मोक्ष दोनो साध्य होनेपर तो दो भङ्ग पड़ जाये । दर्शनका विषय भङ्ग (दो) नही है । सम्यग्दर्शन व केवलज्ञान खुल जाय सो निश्चयसे आदरणीय नही है । साध्य-साधनका भेद निश्चयमे है ही नही । भेदका ज़ोर आवे तो अभेदपर ज़ोर नही आता ।
-[गु आत्मधर्म अक १०-११मेसे उद्धृत (हिन्दी अनुवाद)] आत्मा द्रव्यदृष्टि से अपरिणमन स्वरूप है, अर्थात् द्रव्यदृष्टिसे पुण्य-पापका विकार होनेका सामर्थ्य आत्मामे नही है । पर्यायदृष्टिसे परिणामी है, स्वभावमे शुद्ध पर्यायरूप भी परिणमता है। और अशुद्ध पर्यारूप भी परिणमता है। शुद्ध वस्तु-दृष्टिसे आत्मा अपरिणमन स्वरूप है अर्थात् कूटस्थ है; लेकिन तहन कूटस्थ है ऐसा नहीं है। कथंचित किसी अपेक्षासे कूटस्थ है और कथंचित् किसी अपेक्षासे परिणामी भी है । बन्ध और मोक्ष पर्याय है, सो निमित्तकी अपेक्षा रखनेवाली पर्याय है । निरपेक्ष दृष्टिसे आत्मा अपरिणामी है। अभेद दृष्टि से आत्मा अपरिणामी है । और द्रव्य-गुण-पर्यायका भेद पाड़नेपर आत्मामे शुद्ध निरपेक्ष पर्याय है, इसलिये आत्मा परिणामी भी है। सिद्ध भगवन्तके अनन्त गुणमे भी परिणमन हो रहा है, इसलिये आत्मा परिणामी है । लेकिन द्रव्यदृष्टिसे - अभेद दृष्टिसे आत्मा अपरिणामी है।
__ - [समयसार प्रवचन भाग-५ पृष्ठ ३५२-५३ गाथा २८०के प्रवचनमेसे उद्धृत (हिन्दी अनुवाद)]