________________
१४४
द्रव्यदृष्टि-प्रकाश (भाग - ३) खोल कर वैसे जोरको ढीला करना, वह अपेक्षा सम्बन्धित विपर्यास है जो खटकता है । ] ३५१.
प्रश्नः- अनंत ज्ञानियोंका एकमत होनेसे ज्ञानीको निःशंकता आ जाती है?
उत्तर :- अनंत ज्ञानियोका एकमत होनेसे नही परन्तु अपना सुख पीनेसे ज्ञानीको निःशंकता आ जाती है । [ ज्ञानीकी नि शकता स्वयके उपादान/अनुभव पर आधारित है, दूसरे निमित्तके आधारित नही । ] ३५२.
खाली निश्चयकी बात करे और अशुभमे रस पड़ा रहे तो वह निश्चयाभासी हो जाता है। परन्तु जो निश्चय स्वभावमे ज़ोर देकर [ आश्रय करके ] पर्यायकी गौणता करे, वह निश्चयाभासी कैसे होवे ? [ निश्चयाभासीको निश्चयस्वरूपका अवलम्बन नही होनेसे वह निजात्मरसके वेदनसे शून्य है । वह सिर्फ निश्चयकी बातोमे जोर देता/ लगाता रहता है । ऐसी स्थितिवश उसको अशुभमे यानी पचेन्द्रियोके विषयोमे सुखके अभिप्राय पूर्वक रस आता है, जो निश्चयाभासीका प्रमुख लक्षण है। ] ३५३.
प्रश्न :- भक्ति-पूजामे आप कम जाते हो; चौबीसो कलाक (घंटों) निर्विकल्पता थोड़े-ही रहती है ?
उत्तर :- अरे ! चौबीसो कलाक निर्विकल्पता नही रहती है परन्तु उस तरफ़ ढलनेका प्रयास तो हो सकता है न ? क्या इसमे शुभभाव नही है ? - इसमे तो ज्यादा शुभभाव है, उसकी तो गिनती ही नही; और शरीरादिककी क्रिया हो उसको गिनते हो ! ३५४.
जिस अपेक्षासे वस्तुका जो स्वभाव है उस अपेक्षासे शत प्रतिशत वैसा ही एकान्त स्वभाव है, वह स्वभाव अन्य अपेक्षा लगानेसे टीला नही हो सकता । ३५५.