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द्रव्यदृष्टि-प्रकाश (भाग - ३) जो सुखरूप है । कृत्रिम उद्यम तो विकल्पवाला खोटा पुरुषार्थ है, दुःखरूप है । ५८२.
परिणाम मात्र व्यवहार है । परिणामकी दृष्टिसे दीनता आती है। पर्यायमे रुकनेसे एकान्त दुःख होता है । परिणाम उत्पाद-व्यय स्वरूप है । 'मैं' तो अपरिणामी हूँ, जिसमे उत्पाद-व्यय नही है; निगोदसे लेकर सिद्ध तक वैसा का वैसा ही हूँ । परिणाममे प्रसरनेसे परिणाम जितना हो जाएगा। [ क्षणिकपरिणाम जितना ही अपना जीवन ( अस्तित्व ) ग्रहण करनेसे – ऐसे मिथ्यात्वके फलस्वरूप - निगोदका क्षणिक जीवन प्राप्त होता है। ] ५८३.
प्रत्येक परिणाम सत् है; उसमे फेर-फार करनेका विकल्प झूठा है। ध्रुव, सदा ध्रुवरूप ही है - वो उत्पाद-व्ययको क्या करे ? ५८४.
'मै' तो विकल्प मात्रसे और परिणाम मात्रसे रहित हूँ। ५८५.
'मेरा' अस्तित्व परिणाम तथा विकल्पमे नही है । 'मैं' तो वर्तमानमे ही त्रिकाली अपरिणामी हूँ । 'मेरे' मे [ विकल्पके ] कर्तापनेका स्वभाव हो तो मुक्ति कभी नही हो सकती । ५८६.
____ 'मै' नित्य सदृश्य हूँ, जिसमे कुछ करनेका या फेर-फार करनेका नही है । नित्य वस्तुको ध्येय बनानेसे 'मेरे' मे [ सासारिक ] सुख-दुःख नही है; हर्ष-शोक तो पर्यायदृष्टिमे है । ५८७.
पर्याय विनश्वर है; इसमे एकत्व करनेसे 'स्वयं' विनश्वर होता है। श्री योगेन्द्रदेव कहते है कि - "उत्पाद-व्यय, बंध-मोक्ष 'पर्याय' मे है, 'मेरे' मे नही ।" [श्रीमद् राजचद्रजीने भी कहा है कि - दिगम्वर