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तत्त्वचर्चा
१७१ जाए तो भी मुझे मालूम न पड़े । मेरे कपड़े कितने है ? घरमे चीज़-वस्तु है या नही ? - मुझे कुछ मालूम नही रहता । [ अवारगे लक्ष्य इतना कम हो गया था।] ४९७-अ [ अगन ]
रुचि हो तो प्रवृत्तिमे भी अपने कार्यमे विघ्न नही आता । दूसरेसे तो कुछ लेना नहीं है, ओर ( स्वयं) सुखका धाम हे । उपयोगरहित चक्षुकी माफिक [ -T7 ] प्रवृत्तिमे दिखाई तो दे, परन्तु उपयोग [ गावधानी ] तो इधर [ अन्नम ] काम करता रहे । ४९८.
[ ज्ञानीका ] भक्ति आदिके शुभभाव आवे तब वाहरमे तो उल्लसित दिखाई दे, लेकिन उसी क्षण अभिप्राय निषेध करता है । ४९९.
प्रश्न :- अशुभमे तो दुःख लगता है, लेकिन शुभमे दुःख नही लगता है ? __ उत्तर :- शुभको ठीक माना है, इसीलिए दुःख नही लगता । पहले अशुभमे ठीक माना था तो वहाँ दुःख नही लगता था । इधर [ आन्मामे ] आवे तो इघरके सुखके अनुभवमे शुभ-अशुभ दोनो ही दुःखरूप दिखते है । जेसे मक्खी फिटकरी पर बेठले ही फट-से उड़ जाती है, किन्तु शक्कर पर बैठी हो तो भले ही पंख टूट जाएँ.. तो भी, उठना नही चाहती । - ऐसे यहाँ भी समझ लेना । [ शुभ-अशुभ दोनोमे ही दुख है, फिर भी उनमे दु ख न लगनेका कारण वहाँ ठीकपना माना है | अतएव स्वयक अवलाकनसे उक्त प्रकारकी भूल निवृत्त हो तो शुभाशुभभावमे रहा हुआ वास्तविक दुख मालूम पड़ेगा । परन्तु इस विषयकी समझको मात्र न्याय-युक्तिकी मर्यादामे रखना योग्य नही है, अवलोकनपद्धतिमे आना ही श्रयस्कर है । ] ५००.
जिसको अपना सुख चाहिए उसे, अपना सुख जिनको प्रकटा