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परिणाममे व्यापक है । परन्तु दृष्टिके विषयकी 112 tur: ...:] अपेक्षासे तो अपरिणामी द्रव्य परिणाममे व्यापक नहीं है । ३१.
दृष्टिका विषयभूत द्रव्य एकान्त फूटस्य की है। पर्यायकी अपेक्षासे पर्याय एकान्त अनित्य ही है। [ - 1 ] ३२.
प्रश्न :- निर्विकल्प उपयोगमे कैसा आनन्द आता है ?
उत्तर :- निर्विकल्प उपयोगके सखकी तो क्या वात को। लेकिन समझानेके तीर-से जैसे गनेके (शेरडीके) रसकी चूंट पीते हैं, वैसे आनन्दकी पूंट...एक्के बाद एक चलती रहती है। उसमेसे निकलनेका भाव ही नहीं आता । ३३.
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fair in ] अशुभपरिणामके कालमें इस ओरका | गला झुकाव मन्द होता है । शुभपरिणामके कालमें इस ओरका थोडा ज़्यादा | m] युकाव होता है। [पाना बानो प्रभाग irmir ] दृष्टिका झुकाव तो वैसा का वैसा ही है । लडाईके कालमे वाहर लडाईकी क्रिया होती है और रागमे अशुभरागकी क्रिया होती है। पर 'मैं' तो मेरेमे ही अचल रहता हूँ, मेरेमे तो उस समय भी रागकी क्रियाका अभाव है । ३४.
'म' अडिग हूँ, किसीसे डिगनेवाला नही हूँ - ऐसा निश्चय होनेपर, निर्णयका फल आनन्द आना चाहिए; तव ही निर्णय सचा हे । ३५.
[भेटज्ञानका ग्वरूप ] हर समय विकल्पसे भेदज्ञान करना नही पड़ता, वो तो सहजरूपसे हो जाता है । ३६.
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दृष्टि द्रव्यमे तादात्म्य हो जानेपर भी चारित्रपरिणति कुछ च्युत होकर