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पूज्य गुरुदेव श्रीके प्रवचन
श्री परमात्मप्रकाश-गाथा ६८ पर पू. गुरुदेव श्रीका प्रवचन ( कार्तिक वद ५, दिनाक २३ - १२ - ६५, शनिवार ) णवि उप्प ण वि मरइ बंधु ण मोक्खु करेइ । जिउ परमत्यें जोइया जिणवरु एउ भणेइ ॥ ६८ ॥
यद्यपि यह आत्मा, वस्तु जो द्रव्य, शुद्ध परमपारिणामिकभावरूप वस्तु है, सो वस्तु न बन्धकी कर्ता है, न मोक्षमार्गकी कर्ता है, न मोक्षकी कर्ता है - यह सूक्ष्म वात है । वस्तु जो द्रव्य ध्रुववस्तु है, सो संसारके भावको नही करती है, मोक्षमार्गको नही करती है और मोक्षको नही करती है । आत्मा अखण्डानन्द ध्रुवतत्त्व वस्तु, ऐसा आत्मा, जन्म, मरण, बन्ध, मोक्ष आदि अवस्थाको नही करता है । वर्तमान पर्यायमे वस्तु शुद्ध द्रव्य है ऐसी शुद्धात्मानुभूतिका अभाव होनेसे - शुभ-अशुभ उपयोगको करता हुआ, जीवन-मरण, शुभ-अशुभ कर्मबन्धको करता है । वस्तु तो पर्याय रहित है । वस्तु जो है ध्रुव निश्चयतत्त्व, सो निश्चयका विषय है । और उसकी जो पर्याय है सो व्यवहारतत्त्व, व्यवहारका विषय है । ऐसे आत्माका व्यवहारतत्त्व है सो पर्याय है । और आत्माका निश्चयतत्त्व है सो एकरूप ध्रुव... ध्रुव ... ध्रुव है । और व्यवहारतत्त्वरूप पर्यायमे जब तक वस्तुका लक्ष, रुचि, स्थिरता, अनुभूति, मोक्षमार्गका अभाव है तब तक शुभाशुभ भावको पर्याय करती है । आत्मा करता है उसका अर्थ द्रव्य नही, पर्याय करती है । द्रव्य चैतन्यभगवान, ज्ञायकस्वरूप जो वस्तु है, सो तो पर्याय बिनाकी, उत्पाद-व्यय बिनाकी है । उत्पाद-व्यय जो है सो व्यवहारनयका विषय आत्मा है। निश्चयका विषय त्रिकाल ध्रुव है । निश्चयतत्त्व जो वस्तु, उसके अनुभवकी व्यवहारपर्याय जो है अनुभूति अर्थात् ज्ञायकमूर्तिका श्रद्धान, ज्ञान, रमणतारूप अनुभव अर्थात् मोक्षका मार्ग ऐसी जो शुद्ध व्यवहारपर्याय, उसके अभावमे पर्यायमे शुभ-अशुभभावको करता है और शुभअशुभभावके कारण जन्म-मरणको करता है; और शुद्धात्मानुभूतिके प्रगट होनेपर शुद्धोपयोगसे परिणत
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