________________
आध्यात्मिक पत्र
३१
अतः क्या जवाब दूँ ? मेरी ऐसी स्थितिमे आप वहाँके रोज़ाना या हफ्तेके ख़ास ख़ास गुरुदेव श्रीके न्याय आदि लिखो तो अधिक प्रिय लगेगे । आना तो होगा जब होगा, शायद जल्दी आ भी जाऊँ, ऐसा योग भी दिखता तो है ।
सब बहनोको व शशीभाईको धर्मस्नेह ।
[२९]
श्री सद्गुरुदेवाय नमः
- आत्मार्थी
कलकत्ता
३-९-१९६२
आत्मार्थी
धर्मस्नेह |
आपका पत्र पहले भी मिला था व शशीभाईका एक और भी । आपने लिखा था कि अव निवृत्ति काल पका, यह पढ़कर विजलीके वेगकी तरह आनन्दकी लहर आयी थी; कारण पूर्वे निवृत्ति ही विकल्परूपसे निश्चये भजी थी, ऐसा पूरा प्रतीतिमे आता है । अव तो श्री गुरुदेवकी कृपासे न निवृत्त हूँ, न प्रवृत्त हूँ, ऐसा निश्चय हो चुका है व पूर्वके निवृत्तपरिणामोने अतः अब निश्चयके बजाय व्यवहारका पद ले रखा है। समय लगभग २० दिन पहले आया भी था, बम्बई तक जाना भी हुआ था, सोनगढ़ पहुँचनेके विकल्प भी अधिक हुए थे मगर इधर ही लौटना पड़ा, ऐसे कारण हो गये थे । अब दशहरे के बाद उधर आना हो सकेगा ।
अगर लोग साक्षात् चैतन्यमूर्ति गुरुदेवके सान्निध्यमे दशलक्षणी पर्वके अवसर पर अति उत्साहपूर्वक धर्मलाभ लेगे, मुझ जैसे पुण्यहीनको यह लाभ कहाँ ?...
अधिक क्या लिखूँ ? विकल्पोको तो धधकती हुई भट्ठीके योगोंका निमित्त है व इस मध्ये ही रहना हो रहा है, जबकि चैतन्यमूर्ति विकल्पोको