________________
आध्यात्मिक पत्र विराजमान हो जावो' ! क्षणे-क्षणे पदे-पदे वीतरागी ज्ञायकरसमे ऐसी मग्नता बढ़ती जायेगी जिसका विच्छेद एक क्षण भी नही गमेगा ।
योग नही होनेसे, महाराज सा०का सोनगढ़ लौटनेका प्रोग्राम लम्बाजानेसे, बम्बईसे सोनगढ़ आनेका मेरा प्रोग्राम बदला गया । पुण्ययोग होनेपर, दशहरेके आसपास आनेका विकल्प है। आप सदैवानुसार पूज्य गुरुदेवश्रीकी अमृतवाणीका लाभ लेते होगे। जिसका तात्पर्य उनकी ओरसे दृष्टि उठवाकर, पलटवाकर, निज अमर्यादित अमृत-खानमे व्याप्त कराना
शेष मिलने पर।
सर्व सगसे असग होनेका इच्छुक
निहालचन्द्र
[४२]
कलकत्ता २१-८-१९६३
परम उपकारी श्री सद्गुरुदेवको वन्दन ! धर्मस्नेही शुद्धात्म सत्कार ।
आपका पत्र आज मिला । परम उपकारी श्री गुरुदेव सुख-शान्तिमे है व उनकी अमृतमयी धोधमार वाणीका आप लोग अपूर्व लाभ ले रहे है, जानकर सहज प्रसन्नता हुई।
आपका राजकोटवाला पत्र यथासमय मिल चुका था, बहुत उत्साह भरा था; परन्तु मेरा पुण्य ऐसा कहा कि पूज्य गुरुदेवकी वाणीका बारम्बार लाभ होवे । आपके पत्रोमे मेरे वहाँ आनेके लिये ही मुख्यतया तीव्र अनुरोध रहता है; आनेकी योग्यता नही होती तो क्या जवाब दूं ? सोनगढ़ आनेका लक्ष्य रखकर बम्बई तक आना हुआ, परन्तु महाराजश्रीके विहारसे लौटनेकी तिथिमें अकस्मात् बार-बार फेर पड़ा अतः वापस बम्बईसे ही लौटना पड़ा।