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द्रव्यदृष्टि-प्रकाश (भाग - २) है, अर्थात् वस्तुतासे सिद्धस्वरूप ही आत्मा है । द्रव्य तो ध्रुव...ध्रुव . अनादि-अनन्त सिद्ध है, परमात्म स्वरूप है, उसमे अनन्त परमात्मा विराजते है । वस्तु पूरा वीतराग पिण्ड है, उसको भगवान परमात्मा अरिहंत तीर्थकरदेवने देख लिया कि यह द्रव्य, यह वस्तु, उत्पाद-व्यय रहित है। जाननेवाली भले ही पर्याय, लेकिन जानी हुई वस्तु ध्रुव; उसको वीतराग निर्विकल्प आनन्दरूप समाधि द्वारा तद्भव मोक्षके साधक ऐसे जिनवरदेवने देहमें भी जान लिया है । ऐसा नहीं कि मोक्ष होगा तभी जानेगे । यहाँ ने यहॉ जान लिया है कि यह ध्रुव है। ऐसा जान लिया है। __ भाई ! जिसमें परिणाम नही है । अहा...हा...हा...हा...! ग़ज़ब बात है ! द्रव्य परमात्मा ऐसा का ऐसा त्रिकाल पिण्ड है, ऐसा वीतराग समाधिके बलसे अनुभवकर - ऐसा शिष्यको भी कहते हैं कि अनुभव कर !
श्री परमात्मप्रकाश-गाथा ६५ पर पू. गुरुदेवका प्रवचन
(स २०२२, कारतक वद १,दि १०-११-६५) बन्धु वि मोक्खु वि सयलु जिय जीवहँ कम्मु जणेइ। अप्पा किंपि कि कुणइ णवि णिच्छउ एऊँ भणेइ ॥६५॥
भगवान तीर्थकरदेव, सर्वज्ञदेव, परमात्मा ऐसा कहते हैं - यह वस्तु है जो आत्मा, सो आत्मा, सो ध्रुव, चैतन्य, आनन्दकन्द, ज्ञायकमूर्ति, अनन्तगुणका ध्रुवस्वभाव आत्मा है । आत्मा वस्तु जो है सो ध्रुव, बिना आदि-अन्तका, अकृत्रिम, सामान्य ध्रुवतत्त्व है। आत्मा क्या है ? उसकी जीवने अनन्तकालमें दृष्टि नहीं की। __ भगवान सर्वज्ञ परमात्मा तीर्थकरदेव, जिसने एक समयमें, सूक्ष्मकालमें तीनकाल-तीनलोक प्रत्यक्ष देखा और जाना- ऐसा अरिहंत भगवान, जिसने एक समयमें, केवलज्ञान-केवलदर्शनकी दशा द्वारा तीनकाल, तीनलोक देखा-जाना; वो भगवानकी वाणीमे ऐसा आया कि भैया ! निश्चयसे अर्थात्