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आध्यात्मिक पत्र
[४५]
दु
श्री सद्गुरुदेवाय नमः
४९
[४६ ]
ॐ
श्री सद्गुरूदेवाय नमः
कलकत्ता
२६-६-१९६२
आत्मार्थी
शुद्धात्म सत्कार ।
आप लोगोको तत्त्वकी स्वयंकी रुचि बढ़ रही है, अतः तत्त्वचर्चामे प्रमोद होता है । जो पत्र लिखा है। अब तो सुनने-सुनानेमे भी थकान मालूम होने लगे, ऐसी परिणति जागृत होनी चाहिए। सो नित्य सुखधाम स्वक्षेत्रमे अडिग जमते ही उत्पन्न एकान्त सहज सुखमें प्रत्यक्ष अनुभव होगा। कुछ करना - कराना नही है, मात्र स्व अस्तित्वमें दृष्टि पसारकर एकान्ते थम्भ जाना है । ध्रुव ज्ञानानन्दमूर्ति अनन्त गुणोकी खान हूँ । परिणमन क्रियाऍ सहज हो रही है । प्रतिसमय नित्यव क्षणिक दोनो भावोका एक ही समय सहज अनुभव वर्तता रहे, ऐसा परम उपकारी श्री गुरुदेवका वाच्य है; सो अभ्यास वर्तो । मात्र क्षणिक वेदन ही नही प्रतिभासो ।
धर्म निहालचन्द्र
कलकत्ता
२७-९-१९६३
आत्मार्थी
शुद्धात्म सत्कार ।
श्री लालचन्दभाईकी परिणतिमे मुख्यतया अध्यात्ममन्थन चलता है । अभी बम्बईमे आए भाईयोके पत्रमें भी पूर्व अवसरके उनके वहाँके वांचनमे ऐसी परिणतिका ज़िक्र आया है । अतः चित्त प्रसन्न होता है । उन्हे, डॉ. चन्दुभाई व अन्य सब मिलनेवाले साधर्मी भाईयोंसे मेरा धर्मस्नेह कह ।