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द्रव्यदृष्टि-प्रकाश (भाग - १) इस प्रकारके एक ही समयमे परिणामका कर्ता व अकर्तापनेके अनुभवकी वृद्धि होते-होते पूर्ण ज्ञानका सहज ही अनुभव होगा, यही वांचन व विचारणा है। ____ आशा है आप भी आत्मस्वास्थ्य सहज वृद्धि करते रहेंगे । यहाँ योग्य कार्य लिखें।
धर्मस्नेही निहालचन्द्र
कलकत्ता
२१-१-१९६३ आदरणीय श्री सादर जयजिनेन्द्र ।
आशा है आप वहाँ कुशल होगे। कुछ दिनो पहले आपका कार्ड यथासमय मिला था।...आशा है अध्ययन आदि चल रहा होगा। Retiredlifeमे पहले के मुकाबिले मानसिक बोझा हल्का महसूस करते होंगे। सोनगढ़की ओर जानेका भी प्रोग्राम कब है? धार्मिक ग्रन्थोमे किन-किन ग्रन्थोंका स्वाध्याय चल रहा है?
ज्ञानभण्डार आत्मामेसे ज्ञान उघड़ता रहता है, शास्त्रोसे नहीं; यह अलौकिक सिद्धान्त विचारणीय है। उत्तर क्षणमे क्या परिणाम होगा, उसका वर्तमान क्षणमे हमे ज्ञान नही, तो भविष्यके लिये क्यो व्यर्थकी कल्पना ? परिणामके अलावा शरीरादिककी क्रियामे तो हमारा कोई कर्तृत्व है ही नहीं। तो फिर इनके आश्रित विभावपरिणामोका व्यर्थ क्यो बोझा लादा जाये ? उद्देश्यका निर्णय करना सहज परन्तु उसकी प्राप्तिमे समय अधिक लगता है। यथार्थ निर्णयके बाद ही यथार्थकी प्राप्ति होती है। अनुभूति ही यथार्थ निर्णयकी निःशंकता बता सकती है। चूंकि आपका समय अब अध्यात्मकी तरफ़ अधिक लगेगा अतः चन्द बाते ऊपर सहज ही लिखी गई है। आगेका प्रोग्राम लिखे।
निहालचन्द्र सोगानी
शुभैषी