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आध्यात्मिक पत्र आज्ञाए थाशुं ते ज स्वरूप जो।" सम्यक् पुरुषार्थसे या तो पुण्ययोग होकर, अनुकूलता प्राप्त होकर राग टूटे अथवा पुण्यके अभावमें वीतरागता बढ़ कर राग टे । राग टूटना निश्चित है, क्योंकि श्रद्धाने राग-अरागरहित स्वभावका आश्रय लिया है व वीर्यको क्षण-क्षण उधर ही उधर सहज उन्मुखता होनेसे ज्ञान-आनन्दमयी अरागी परिणाम ही वृद्धिगत होंगे, यह नियम प्रत्यक्ष अनुभवगम्य है।
अभी रात्रिके आठ बजे है, मन्दिरजी जानेका समय है अतः बन्द करता हूँ ... सबको धर्मस्नेह।
धर्मस्नेही निहालचन्द्र
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कलकत्ता ४-९-१९५६
श्री सद्गुरुदेवाय नमः आत्मार्थी धर्मस्नेह।
कार्ड मिला । परम पूज्य महान्योगी श्री गुरुदेवके चरणोमे सादर प्रणाम । आशा है गुरुदेवश्री सुख-शान्तिमे विराजते होगे व आप पुण्यवान जीव उनकी साक्षात् अमृतवाणीसे पूर्ण तृप्त हो रहे होगे।
लम्वे कालसे, हीनयोगसे, मुझे तो प्रत्यक्ष गुरु दर्शनका अभाव रहा है। शिखरजीकी यात्रापर, अथवा कलकत्तेके प्रोग्राम पर पुण्योदयसे, साक्षात् दर्शनका लाभ होनेवाला है, यह जानकर बहुत प्रसन्नता है। _____ भादवा सुदी ५ को बहिनें आजीवन ब्रह्मचर्यकी प्रतिज्ञा लेगी, यह प्रसंग बहुत सुखप्रद होगा । शान्ताबहिनका आज कार्ड मिला, मालूम हुआ अचरजबहिनकी बच्चियाँ भी प्रतिज्ञा लेंगी, बहुत हर्षका विषय है; मै इस अवसर पर जैसा कि बहिनने शरीक होनेको लिाखा है, वहाँ नही आ