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द्रव्यदृष्टि-प्रकाश (भाग - १)
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कलकत्ता २७-६-१९५४
कलकत्ता
आत्मार्थी प्रत्ये निहालचन्द्रका धर्मस्नेह ।
पत्र एक पहले दिया सो पहुँचा होगा । आशा है पूज्य परम उपकारी सद्गुरुदेव सुख-शान्तिमे विराजते होगे व श्रोतागणोको अमृतरसमे स्नान करनेकी प्रेरणा मिलती होगी ।...
धर्मस्नेही निहालचन्द्र
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कलकत्ता २५-७-१९५४
श्री कहानगुरुदेवाय नमः आत्मार्थी निहालचन्द्रका धर्मस्नेह ।
आशा है पूज्य गुरुदेव सुख-शान्तिमे विराजते होगे । मुमुक्षुमण्डल प्रतिक्षण आत्माश्रित सुखकी वृद्धिमे रत होवो !
आपका पत्र यथासमय मिला था। मेरा अजमेरमे तो लगभग १५-२० दिवस ही रहना हुआ था । आपने लिखा कि "विकल्पy कांईक कार्य
आव्युं नहीं" सो हमारा तो सिद्धान्त भी यह ही है कि - विकल्पके अनुकूल कार्य होवे ही, यह आवश्यक नही है; विकल्प विकल्पमे, कार्य कार्यमे ।
मोक्षमार्गीको कुटुम्बीजनो मध्ये सुख मिलता होवे, यह कल्पना ही गलत है।
"जाल सौ जग-विलास, भाल सौ भुवन वास, काल सौ कुटुम्ब काज, लोक-लाज लार सी"
- बनारसीदासजी उसे तो निरन्तर आत्मरमणता चाहिए । 'अरे ! जिसे धार्मिक जनोके