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[३१] बिजलीकी तरह यह ख़बर चारो ओर फैल गई। किसीने कल्पना भी नही की थी कि इस प्रकार हटात दीप निर्वाण हो जाएगा। श्रद्धापूर्वक उनके पार्थिव शरीरको चन्दन-कपूर युक्त चिताकी भेट कर दिया गया । पीछे छूट गया पुण्यात्माका यशः शरीर । * श्रीगुरुके उद्गार :
पूज्य सद्गुरुदेवश्री कहानजी स्वामीके पास जब श्री सोगानीजीके आकस्मिक निधनकी ख़बर पहुंची तो उन्होने वैराग्यपूर्ण सहज भावसे अपने उद्गार प्रकट करते हुये कहा : "अरे ! आत्मार्थीने मनुष्य जन्म सफल कर लिया है। स्वर्गमे गये है और निकट भवी है।" ___ अनेक आत्मार्थियोके जिज्ञासा भरे प्रश्न पत्र श्री सोगानीजीके पास आते थे; तादृश सोनगढ़ तथा बम्बईके प्रवासमे अनेक मुमुक्षुओके साथ तत्त्वचर्चा होती थी; उन सबका वे यथोचित समाधान देते । इनमेसे विशेष कर सन् १९६२-१९६३मे हुई तत्त्वचर्चाको अनेक मुमुक्षुओने लिख लिया था । सद्भाग्यसे वह (उक्त) सामग्री उन मुमुक्षुओके पास सुरक्षित थी; जिसे पुस्तकाकाररूपमे प्रकाशित करने हेतु पू. गुरुदेवश्रीकी स्वीकृति मिल जाने पर, उस सामग्रीको संकलित-संपादित करके "द्रव्यदृष्टि-प्रकाश" शीर्षकसे ग्रंथारूढ किया गया । जब इस ग्रंथकी छपाईका कार्य पूरा हो गया तो उसकी प्रति पू. गुरुदेवश्रीको देते हुए इस ग्रंथ हेतु आशीर्वाद स्वरूप उनके स्वहस्ताक्षरोकी टिप्पणीकी याचना की तो उन्होने ग्रंथके सतही अवलोकनपरसे लिखा कि : "भाई न्यालचंद सोगानी आत्माना संस्कार रारा लईने देह छुट्यो छे"।
परंतु इस ग्रंथके तलस्पर्शी अध्ययनसे श्री सोगानीजीके 'अक्षरदेह' परसे पू. गुरुदेवश्रीको स्वर्गस्थ आत्माकी यथार्थ, उच्च, शुद्ध अंतर्दशाकी सुप्रतीति हो गई । और तदुपरांत तो वे अपने प्रवचनोमें वारंवार श्री सोगानीजीकी आध्यात्मिक उपलब्धियो, उनके असाधारण पुरुषार्थ व मार्मिक शैलीकी मुक्तकंठसे सराहना करते रहे । कभी कभी तो वे भावविभोर होकर