Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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है, वही स्थान जैन ज्योतिष में भद्रबाहुसंहिता का है। निमित्त ज्ञान के विषय को इतने विस्तार के साथ उपस्थित करना इसी ग्रन्थ का कार्य है ।
प्रस्तावना
मद्रबाहु संहिता के रचयिता और उनका समय
इस ग्रन्थ का रचयिता कौन है और इसकी रचना कब हुई है, यह अत्यन्त विचारणीय है । यह ग्रन्थ भद्रबाहु के नाम पर लिखा गया है, क्या सचमुच में द्वादशांगवाणी के ज्ञाता श्रुतकेबली भद्रबाहु इसके रचयिता हैं या उनके नाम पर यह रचना किसी दूसरे के द्वारा लिखी गयी है। परम्परा से यह बात प्रसिद्ध चली आ रही है कि भगवान वीतरागी, सर्वज्ञ गाषित निमित्तानुसार श्रुत केवली भद्रबाहु ने किसी निमित्त शास्त्र की रचना को श्री; किन्तु आज वह निमित्त शास्त्र उपलब्ध नहीं है। श्रुतकेवली भद्रबाहु यी नि० सं० 155 में स्वर्गस्थ हुए, इनके ही शिष्य सम्राट् गुप्त थे। मगध में बारह वर्ष के पड़ने वाले दुष्काल को अपने निमित्त ज्ञान से जानकर ये संघ की दक्षिण भारत की ओर ले गये थे और वहीं इन्होंने समाधि ग्रहण की थी । अतः दिगम्बर जैन साधुओं की स्थिति बहुत समय तक दक्षिण भारत में रही। कुछ साधु उत्तर भारत में ही रह गये, समय दोष के कारण जब उनकी चर्चा में बाधा आने लगी तो उन्होंने वस्त्र धारण कर लिये तथा अपने अनुकूल नियमों का भी निर्माण किया। दुफाल के समाप्त होने पर जब मुनिसंघ दक्षिण से वापस लौटा, तो उसने यहाँ रहने वाले मुनियों की चर्या की भर्त्सना की तथा उन लोगों ने अपने आचरण के अनुकूल जिन ग्रन्थों की रचना की थी उन्हें अमान्य घोषित किया। इसी समय से श्वेताम्बर सम्प्रदाय का विकास हुआ। वे शिथिलाचारी मुनि ही वस्त्र धारण करने के कारण श्वेताम्बर सम्प्रदाय के प्रवर्तक हुए। भगवान् महावीर के समय में जैन सम्प्रदाय एक था; किन्तु भद्रबाहु के अनन्तर यह सम्प्रदाय दो टुकड़ों में विभक्त हो गया । उक्त भद्रबाहु श्रुतकेचली को ही निमित्तशास्त्र का ज्ञाता माना जाता है, क्या वहीं श्रुतकेवली इस ग्रन्थ के रचयिता हैं ? इस ग्रन्थ को देखने से यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि भद्रबाहु स्वामी इसके रचयिता नहीं हैं 1
यद्यपि इस ग्रन्थ के आरम्भ में कहा गया है कि पाण्डुगिरि पर स्थित महात्मा, ज्ञान-विज्ञान के समुद्र, तपस्वी, कल्याणमुनि, रोगरहित, द्वादशांग श्रुत के वेत्ता, निर्ग्रन्थ, महाकान्ति से विभूषित, शिष्य-प्रशिष्यों से युक्त और तत्त्ववेदियों में निपुण आचार्य भद्रबाहु को सिर में नमस्कार कर उनसे निमित्तशास्त्र के उपदेश देने को प्रार्थना की।