Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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सप्तविशतितमोऽध्यायः
मित्रकार्यादि विधायक नक्षत्र
मृगान्त्यचित्रामित्रक्षं मृदुमैत्रं भृगुस्तथा । तत्र गीताम्बरकी डामित्रकार्य विभूषणम् ॥
मृगसिरा, रेवती, चित्रा, अनुराधा ये चार नक्षत्र और शुक्रवार इनकी मृदु और मैत्र संज्ञा है। इनमें गाना, वस्त्र पहनना, स्वी के साथ रति करना, मित्र का कार्य और आभूषण पहनना शुभ होता है ।
पशुओं को शिक्षित करना तथा दारु-तीक्ष्ण कार्य विधायक नक्षत्र भूमेन्द्राद्वहिर्भ सौरिस्तीक्ष्णं दासंज्ञकम् 1 तत्राविचारसातोग्रभेदाः पशुमादिकम् ।।
ग्रहों का स्वरूप
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मूल, ज्येष्ठा, आर्द्रा, आषा ये चार नक्षत्र और अनि तीक्ष्ण और दासंज्ञक । इन भयानक कार्य करना, मारना पीटना, दापोडे आदि को खिलाना ये कार्य सिद्ध होत हा
ग्रहों का स्वरूप जान लेना भी आवश्यक है ।
सूर्य- यह पूर्व दिशा का स्वामी, पुरुष ग्रह मम वर्ण, पित्त प्रकृति और पा ग्रह है। यह सिंह राशि का स्वामी है। सूर्य आत्मा स्वभाव आरोग्यता, राज्य और दबालय का सूचक है। पिता के सम्बन्ध में सूर्य से नेत्र, अनेजा, मरुदण्ड र वायु आदि अवों पर है । यह लग्न से सम्मान में बना गया विष्टबची है। इससे आरीरिक रोग, सिख, अब अय, महाज्वर, अतिसार, मन्दारिख, विकार, मानसिक रोग, उशया सेद, अपमान एवं फल आदि का विचार किया जाता है।
विचार किया जाता हूँ । मचा विशेष प्रभाव पड़ता मार से राशि पर्यन्त
चन्द्रमा पश्चिमांतर दिशा का स्वामी स्त्री स्वेतवर्ण और गलग्रह है । यह क्रकंदराशि का स्वामी है। बात इसकी धातु है। माता-पिता, निवृत्ति, शारीरिक पुष्टि, राजानुग्रह, सम्पनि र चतुर्थ स्थान का कारक है। चतुर्थ स्थान न चन्द्रमा बली और मरनियों में इनका वल है। कृष्णपक्षको पष्ठी म लुक्न पक्ष की दशमी क्षीण चन्द्रहने के कारण ग्रह और बुक्ल पक्ष dreamin an pour rear di mana a qui soita as a game fr मूत्रकृच्छ स्त्रीजन्य रोग, माना गया है। उराम पाण्डुसंग अन्नज तथा कफन रोग, भानाया. या उदर और भरत सम्बन्धी का विचार किया जाता हूँ। मंगल--दक्षिण दिशा का स्वामी, पुरुष जाति, पित्तप्रकृति, रक्तवर्ण ओर
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