Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
परिशिष्टाऽध्यायः
वृश्चिकं दन्दशूकं वा कीटक वा भयप्रदम् । निर्भयं लभते यस्तु धनलाभो भविष्यति ॥97॥
जो स्वप्न में बिच्छू, साँप तथा अन्य भयकारक जन्तुओं से निर्भय अवस्था को प्राप्त होते हुए देखे उसे धनलाभ होता है 11971
पुरीषं छदितं मूत्रं रक्तं रेतो वसान्वितम् । भक्षयेत् घृणया हीनस्तस्य शोकविमोचनम् ॥19॥
477
जो स्वप्न में टट्टी, वमन, मुत्र, रक्त, वीर्य, चर्बी इत्यादिक घृणित वस्तुओं को घृणा रहित भक्षण करते हुए देखें उसका शोक नष्ट होता है 11981
वृषकुञ्जरप्रासादक्षीरवृक्ष शिलोच्चये ।
अश्वारोहणं शुभस्थाने दृष्टमुन्नतिकारणम् ||991
जो स्वप्न में बैल, हाथी, महल, पीपल, बड़ एवं घोड़े के ऊपर चढ़ता हुआ देखे उसकी उन्नति होती है || 99 ||
भूपकुञ्जरगोवाधनलक्ष्मीमनोभुवः ।
भूषितानामलंकारदर्शनं विधिकारणम् 100
जो स्वप्न में राजा हाथी, गाय, सवारी, धन, लक्ष्मी, कामदेव तथा अलंकार और आभूषणों से युक्त पुरुष का दर्शन करता है उसको भाग्य की वृद्धि होती है 1000
पयोधि तरति स्वप्ने भुङ्क्ते प्रासादमस्तके | देवतः लभते मन्त्रं तस्य वैश्वर्यमद्भुतम् ॥101
जो स्वप्न में अपने को समुद्र पार करते हुए, महल के ऊपर भोजन करते हुए तथा किसी अभीष्ट देवता से मन्त्र प्राप्त करते हुए देखता है, उसे अद्भुत ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है ॥10॥
शुभ्रालंकारवस्त्राढ्या प्रमदा च प्रियदर्शना ।
लिष्यति यं नरं स्वप्ने तस्य सम्पत्समागमः ॥12॥
जिसे स्वप्न में स्वच्छ वस्त्रों ओर अलंकारों से युक्त सुन्दर स्त्री आलिंगन करती हुई दिखलाई पड़े, उसे सम्पत्ति प्राप्ति होती है 111028
सूर्यचन्द्रमसौ पश्येदुदयाचल मस्तके !
स लात्यभ्युदयं मत्र्यो दुःखं तस्य च नश्यति ॥1031
जो स्वप्न में उदयाचल पर सूर्य और चन्द्रमा को उदित होते हुए देखे उस