Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहुसंहिता
जो स्वप्न में अपने दांतो को गिरते हए तथा अपने सिर से बालों को गिरते या जगड़ते हुए देखता है, उनके धना और बान्धव नाश को प्राप्त होते हैं और शारीरिक काट भी उग होता है ।।।।6।।
दंष्ट्री शृंगी वराहो वा बानरो मगनायकः।
अभिद्रवन्ति यं स्वप्ने भवेत्तस्य महद्भयम् ॥117 जा स्वप्न में अपने पीछे दाँत वाले और सींग वाले शूकर, बन्दर एवं सिंह आदि प्राणियों को दौड़त हुए देवता है, उसे महान् भय प्राप्त होता है ।।117|
पतनलादिभिः स्वांगे वाभ्यंग निशि पश्यति ।
मस्ततो बुद्ध्यते स्वप्ने व्याधिस्तस्य प्रजायते !!!8॥ जो गप्न में अपने शरीर में घी या तेल की मालिश करते हुए देखता है तथा म्बाज दर्शन . पञ्चात उनको निद्रा नल पाती है, उग रोगोत्पत्ति होती है ||1| |
रक्तवस्त्रालंकारर्भषिता प्रमदा. निशि।
यमालिगति सस्नेहा विषत्तस्य महत्यपि ॥19॥ जो स्वप्न में गम के समय लाल वर्ण के वस्यालंकारों से युक्त नारीमा सस्नेह आलिंगन करते हुए देखता है, उसे महती विपत्ति का सामना करना पड़ता है ।।119॥
पीतवर्णप्रसूनैर्वालङ्कृता पीतवाससा।
स्वप्ने गृति यं नारी रोगस्तस्य भविष्यति ॥1200 जो स्वप्न में पीत वर्ण के पुषों द्वारा अलंकृत तथा पीत वर्ण के वस्त्रों से गज्जित नारी द्वारा अपने को छिपाया हुआ देख वह शीघ्न हो रोगी होता है ।।12011
पुरीष लोहितं स्वप्ने मूत्रं वा कुरुते तथा ।
तदा जागति यो मयों द्रव्यं तस्य विनश्यति ।।121॥ जोवा में लाल वर्ण यो टट्टी करते हुए या लाल वर्ण का मूत्र करते हुए देने तथा स्थान वर्गन के पश्चात् जाग जाय तो उसका धन नाश होता है ।।।21।।
विष्टां लोमानि रौद्र वा ककुमं रक्तचन्दनम् ।
दृष्ट्वा यो बुद्ध्यते सुप्तो यस्तस्यार्थी विलीयते ॥1221 जिग ब" में विटा.-टट्टी, रोम, अग्नि, ककुम -- रोरी एवं लालचन्दन