Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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परिशिष्टाऽध्यायः
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दम्नेष्टसज्जनश्रम गोधर्म. सौख्यामः ।
जिनपूजा यवैदृष्ट: सिद्धार्थलभते शुभम् ।।1101 स्वप्न में दही के दर्शन से सज्जन-प्रेम की प्राप्ति, गेहूँ के दर्शन में मुम्न की शाप्ति, जी के दर्शन से जिन-पूजा की प्राप्ति एवं पीली सरसों के देखने ग शुभ फल की प्राप्ति होती है ||! 104
शयनासनयानानां स्वांगवाहन वेश्मनाम ।
दाहं दृष्ट्वा ततो बुद्धो लभते कामितां श्रियम् ॥1101 स्वप्न में शयन, आसन, सवारी स्वांगवाहम और मकान या जलना देग्नन के उपरान्त शीत्र ही जाग जाने से अभीष्ट वस्तु की प्राप्ति होती है 11} ! ||
निजांबर्वेष्टयेद् ग्राम स भवेन मण्डलाधिपः।
नगरं वेष्टयेद्यस्तु स पुनः पृथिवीपतिः ।। 12॥ जो स्वप्न में अपने शरीर की नमों में गांव को पति की हा दो बार मण्डलाधिप तथा जो नगर को वेष्टित करते हा दग्ध वह पृथ्वीपति- 11 होता है ॥11211
सरोमध्ये स्थितः पात्रे पायसं यो हि भक्ष्यति ।
आसनस्थस्तु निश्चिन्तः स महाभूमिपो भवेत् ।।1130 जो स्वप्न में तालाब में स्थित हो, बर्तन में रखी हुई पीर यो निश्चिन्त होकर खाते हुए देखता है, वह चक्रवर्ती गजा होता है ।। 1 : 311
देवेष्टा पितरो गात्रो लिगिनो मुखस्थस्त्रियः ।
वरं ददति में स्वप्ने स तथैव भविष्यति ।।।। स्वप्न में देवपूजिका, पितर. -- व्यन्त र आदि वी भक्ता, या देव का आलिगन करने वाली नारियां जिम प्रकार का वरदान देती हुई दिखलाई गई, उसी प्रकार का फल समझना चाहिए ।।।14।।
सितं छनं सितं वस्त्रं सितं कपुरचन्दनम्।
लभते पश्यति स्वप्ने तस्य श्रीः सर्वतोमुखी ।।1।5।। जो स्वप्न में प्रवेत त्र, श्वेत वस्त्र प्रवत चन्दा एवं पुर आदि सम्मान प्राप्त करते हुए देखता है, उभे सभी प्रकार का युदय प्राप्त होत है ।।।15।
पतन्ति दशना यस्य निजकेशाश्वमस्तकात । स्वधनमित्रयोन शो बाधा भवति शरीरके 11111