Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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परिणाम:
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वस्त्रस्य कोणे निवसन्ति देवा
नराश्च पाशान्तशान्तमध्ये। शेषास्त्रयश्चात्र निशाचरांशा
स्तथैव शयनासनपादुकास ॥19॥ नवीन वस्त्र धारण करते समय उसके शुभाशुभत्व का विचार निम्न प्रकार से करना चाहिए । नये वस्त्र के नौ भाग कर के विचार करना चाहिए। वस्त्र के कोणों के चार भागों में देवता, पाशान्त के दो भागों में मनुष्य और मध्य को तीन भागों में राक्षस निवास करते हैं । इमी प्रकार शय्या, आसन और ड़ाऊँ के नौ भाम करके फल का विचार करना चाहिए 11930
लिप्ते मषी कर्दमगोमया
श्छिन्ने प्रदग्ध स्फुटिते च विन्द्यात् । पुष्टे नवेऽल्पाल्पतरं च भुक्ते
पापे शुभं बाधिकमत्तरीये ॥19॥ यदि धारण करते ही नये बस्त्र में ग्याही. गोबर, कीचड़ आदि लग जाय, फट जाय, जल जाय तो अशाभ फन्न होता है। यह फन्न उत्तीय वस्त्र में विशेष रूप से घटित होता है ।1910
रुग्राक्षसांशध्वथ वापि मृत्युः
__ जन्मतेजश्च मनुष्यभागे । भागेऽमराणामथभोगवृद्धिः
प्रान्तेषु सर्वत्र वदन्त्यनिष्टम् ।।2।। राक्षसों के भागों में बस्त्र पद हो तो वस्त्र के स्वामी को रोग या मृत्यु हो, मनुष्य भागों में छेद हो तोन्म और नास्ति-लाभ, देवताओं के भागों में छंद आदि हों तो भोगों में वृद्धि एवं मभी भागों में छेद हो तो अनिष्ट फल होता है । समस्त नवीन बस्त्र में छिद्र होना अशभ है ।1 192||
कंकल्लवोलूककपोतकाक
क्रव्यादगोमायुखरोष्ट्रसः । छेदाकृतिर्दैवतभागगापि,
___ पुंसां भय मृत्युसमं करोति ।।193।। कंक्र पक्षी, मेढ़क, उल्लू, कपोत, मांसभक्षी गृध्रादि, जम्बुक, गधा, ऊंट और सर्प के आकार का छेद देवताओं के भाग में भी हो तो भी मृत्यु के समान व्यक्तियो