Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 582
________________ श्लोकानामकाराद्यनक्रम: 461 468 24 अंग-प्रत्यंगयुक्तस्य अंगानां च कुरूणां च अंगान सौराष्ट्रान् अंगारकान नवान् अंगारकोऽग्निमगाशो अकालजलं फलंग अकाले उदितः शुक्र अगम्यागमन सत्र अगम्यागमनं पश्येत् अग्निमग्निप्रमा अवतस्तु सामाणं अग्नतो या पदुल्का अचिरेणैव कालेन अजवीथीभ प्राप्त: अजबीथीमागने चन्द्र अजवीथी विगाखा च अत ऊर्य प्रवक्ष्यामि अतः परं नरभ्यामि अतीतं वर्तमानं च अतोऽस्य येऽन्यथाभावा अत्यम्वु न विशाबायां अथ गोमत्रपति मान् अथ चन्द्राद विविष्कम्य अथ यद्य भयां सेना अश्च वक्ष्यामि के पांचिन् 442 अथवा मृगांकहीन 310 अथ शिमगतोऽस्निग्धा 64 370 अथ गुर्याद विनिमय 164 अथाला: गंप्रवदया1ि , 63, 84, 366 94, 14, 121, 141, 162, 434 175.272,263, 399 264 अनार द्वारकरण 243 435 अधरनखदशनरसना 464 478 अघोमाबी निजताया। 469 23 अनन्तगं दिशं दीप्ता 137 अनार्याः कच्छ-यौधेया: 269 30 अनावृभियं घोर 192 अनाव प्टिभय रोग 296, 297 अनावृष्टिहता देशा 318 39। अनुगच्छन्ति याश्नोल्या 24 271 अनुराधा वक्त्रदात्री 456 292 अनुगधास्थितो शुको 94 अनुलोमो यदाऽनीक 113 181 अनुलोमो यदा निग्धः 113 299 अनुलोमो बिजयं न ते 321 अनाज: परूप: श्यामो 340 265 अन गवर्णनक्षत्र 21 66 अनेकवर्णसंस्थान 145 29 अन्तःपुरविनाशाग 200 91 88 283 290

Loading...

Page Navigation
1 ... 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607