Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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श्लोकानामकारानुक्रमः
क्षेमं सुभिक्षमारोग्यं 107, 123 124 गृहणीयादे मागेन
गोनागवाजिनां
ख
खण्डं विशीर्ण सछिद्र'
खरवद्भीमनादेन स्वर - शुकश्युक्तेन खजूरोऽनलो वेणुखारी द्वात्रिंशिका जेया खारीस्तु वारिणो विन्द्यात्
ग
गजवीधीमनुप्राप्त गजवीभ्यां नागवीथ्यां
गति प्रवास मुदयं गतिमार्गाकृतिवणं
गन्धर्वनगरं क्षिप्रं
गन्धर्वनगरं गर्भान्
गन्धर्वनगर योनि
गन्धर्वनगरं स्निग्ध
गर्भाधानादयों मासा
गर्भा यत्र न दृज्यन्ते मस्तु विविधा ज्ञेया
गवास्त्रेण हिरण्यंन गिरि निम्ने निम्नेषु
गुरुणा प्रहतं मार्ग
गुरुभार्गव चन्द्राणां
गुरुः शुक्रश्च भीमश्न
सौरच ना
गुरुः
गुरोः शुक्रस्य भीमस्य गुहद्वारे विवर्ण
गृहयुद्धमिदं सर्व
गृहाणां चरितं चत्र
गृहादाकृष्य नीयत्
गृहांश्च वनखण्डाश्म गृहीतो विप्यत चन्द्रो
143
278
436
482
271
123
ग्रहनक्षचन्द्र
ग्रह्नक्षवतियो
297 298 ग्रहानादित्यचन्द्री
390
यहा परस्परं यत्र
331
ग्रहो यह महान
395 ही गुरुबुधो बिन्यात्
144
ग्रामाणां नगराणां च
3
ग्राम्य वा यदि वाऽरण्या
143 ग्राहो नरं नगं कचित्
143
ग्रीवोपकरवन्ध्यो
164
168
164
412
410
242
264
415
399
333
43)
405
गोपालं वर्जयेत् सत्र
मोवीजदोषों वा
गोवीश्री रेवती चैव
गोवीधी समनुप्राप्तः गोत्रीयां नागवीथ्यां
ग्रहणं रविचन्द्राणां
164
415
293
355
घ
घटितावदितं मय
घनादिभिस्वांग
घृती वृताचिश्च्यवन
चतुरंगवलोपत
चतुरंगविती युद्ध
चतुरस्रो यदा चापि
च
चतुर्थ चैन पष्ठं च
चतुर्थी पंच पि
चतुर्थ मण्डने शुक
चतुर्थी विवम् शुक
चतुर्दशानां मान
चतुर्दिक्षु मंदा पृतना
चतुर्दिक्षु रवीन्दूनां
चतुर्भागफला तारा
501
356
201
308
390
270
296, 297
391
475
48
175
25
339
403
403
294
197
441
464
478
480
381
180
180
49
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268
275
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