Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

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Page 581
________________ 494 भद्रबाहुसंहिता को पीड़ा कारक एवं भयप्रद होता है। बस्त्र के छिद्र के आकार पर ही फल निर्भर करता है ।।193।। छत्रध्वजस्वस्तिकवर्धमान___ श्रीवृक्षकुम्भाम्बुजतोरणाद्याः । छेदाकृतिर्नेऋतभागगापि, पुंसां विधत्ते न चिरेण लक्ष्मीम् ।।194॥ छत्र, ध्वज, स्वस्तिक, बधंपान-मिट्टी का सोरा, बेल, कलश, कमल, तोरणादि के आकार का लिद्र राक्षस भाग में हो तो मनुष्यों को लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। अन्य भागों में होने पर तो अत्यन्त शभफल प्राप्त होता है ।।194|| भोक्तं नवाम्बरं शस्तमृक्षेऽपि गुणजिते। विवाहे राजसम्माने प्रतिष्ठा- मुनिदर्शने ॥1951 विवाह में, रायोत्सव में या ग़जसम्मान के समय, प्रतिष्ठोत्सव में, मनियों दे दर्शन के मामय निदानाव में भी स्त्र धारण करना शुभ है ।।)5॥ इति वस्त्र विच्छेदननिमित्तम् । इति श्रीभद्रबाहुसंहितायां निमित्तनामाभ्यायो त्रिशत्तमोऽयम् 30 सम्पूर्णः ।।

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