Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भंद्रबाहुसंहिता भुजंगमे विलुप्यते मघासु मत्यमादिशेत ! भगाह्वये नृपाद्भयं धनागमाय चोत्तरा ॥185॥
आपलेपा में पहनने से वस्त्र का नष्ट हो जाना, मया नक्षत्र में मृत्यु, पूर्वाफाल्गुनी में राजा से भय एवं उत्तराफाल्गुनी में वस्त्र धारण करने से धन की प्राप्ति होती है ।।। 851
करेण धर्मसिद्धय: शुभागमस्तु चित्रया। शुभं च भोज्यमानिले द्विदैवते जनप्रिय: ।।186।।
हस्त नक्षत्र में वस्त्र धारण करने से कार्यसिद्धि होती है, चित्रा में शुभ की प्राप्ति, स्वाति में उत्तम भोजन का मिलना एव विशाखा में जनप्रिय होता है ।।। 861
सुहृद्युतिश्च मित्रभे पुरन्दरेम्बरक्षयः । जलाप्लुतिश्च नैऋते रुजो जलाधिदैवते ।।87॥
अनुराधा में वस्त्र धारण करने से भिन्न गमागम, ज्येष्ठा में वस्त्र का क्षय, मूल में नवीन वस्त्र धार."य बारने में जल में डूबना और पूर्वाषाढा में रोग होता है ।।187॥
मिष्टमन्नमथ विश्वदेवते
वैष्णवे भवति नेत्ररोगता। धान्यलब्धिमपि वासवे विद
रणे विपकृतं महद्भयम् ।।8।। उन रापाड़ा में मिष्ठान्न की प्राप्नि, श्रवण में गबीन वस्त्र धारण करने से नेत्ररोग, निष्टा में नवीन वस्त्र धारण करने में अन्ननाभ एवं शतभिषा में विय का बहुत भय होता है ।।।88||
भद्रपदासु भयं सलिलोत्थं
तत्परतश्च भवेत्सुतलन्धिः । रत्नति कथयन्ति च पोष्णे
योऽभि नवाम्बमिच्छति भोक्तुम् ।। 189।। गुर्वाभाद्रपदा में जानभय, उत्तराभाद्रपदा में पुत्रलाभ और रेवती नक्षत्र में नवीन वस्त्र धारण करने से रन लाभ होता है । 1891