Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

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Page 570
________________ परिशिष्टाऽध्यायः 483 स्वप्न में को गाना गाने हा देखन स नोना, नाचना देखने से बघबन्धन, हंसना देखने में शोज-सन्ताप एवं गमन देखने में कलह आदि फल प्राप्त होते .:.1351 सबंधां शुभ्रवस्त्राणां स्वप्ने दर्शनमुत्तमम्। भस्मास्थितक्रकासदर्शनं न शुभप्रदम् ॥1361 स्वप्न में जन- वत्र मा देखना उत्तम फलदायक है किन्तु भरम. हड्डी, पटठा और बना देना न होता है ।1। 36।। शुक्लमाल्यां शुक्लालङ्कारादीनां धारणं शुभम् । रक्तानिवस्त्राणं धारणं न शुभं मतम् ।।।37॥ या मगन माय और कार आदि या धारण करना शुभ है । रक्तगीत एवं नीला II : य करना ना नहीं है. ।।। 37॥ सन्नः पादररथो वातादिदोषजस्तथा। दृष्ट; श्रुतोऽनुभूतश्च चिन्तीत्पन्न: स्वभावज. 11381 पुण्यं पयं भवेवं मन्त्रज्ञो वरदो मतः । तस्मात्तो सत्यभूती च होयाः घनिष्फला: स्मृताः ।।139॥ ग्वप्न आर प्रकाश में पाप रहित मंत्र-साधना द्वारा सम्पन्न मंत्रज्ञ म्वन, बानादि दागा ग गन्न दोपज, दाट, अत, अनुभूत, चिसोत्पन्न, स्वभावज, पृश्य- पके नापा देव । इन बाट प्रकार का स्वप्नों में मंत्रन और देव स्वप्न सत्य होते हैं । या प्रकार के स्वप्न प्राय: निष्फल होना हैं 1: 1 38-139॥ मलमुत्रादिकायोत्थ आधि-व्याधिसमुदभवः । मालावभावदिवास्वप्नः पूर्वदृष्टश्च निष्फलः ।।140।। पा-मन आतिको मायाग हाना होने वाले स्वप्न, आधि-व्याधि अर्थात् गेगादि में उगन ग्वाल, आलम्य इत्यादि ग पान “वप्न, दिया एवं स्वप्न जानन अनाया मग गम पदार्थों के गंगकार गमन स्वाज प्राय: निफल होत है।।1400 शुभ: प्रामाभ पटवादशुभ: प्राक् शुभस्ततः । गाश्चरायः फलदः स्वप्न पूर्वदृष्टश्च निरफल: ।।14। यदि वन पूर्व में या चान् शुभ होते है, अथवा पूर्व में अणुभ और बाद गंभ हान हैं तो वाद गवाद अवस्था में देखा गया स्वप्न फलदायमा तथा पूर्ववर्ती

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