Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

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Page 571
________________ 484 भद्रबाहुसंहिता अवस्था का स्वप्न निपल होता है ।।। 4110 प्रस्वपेदशुभे स्वप्ने पूर्वदष्टश्च निष्फलः । शुभे जाते पुन: स्वप्ने सफल: स तु तुष्टि कृत् ।।1421 अमम स्वान के आने पर व्यक्ति स्वप्न के पश्चात् जगकर पुनः सो जाय तो अणभस्वा फन नाट हो जाता है । यदि अशाभ स्वान के अनन्तर पून: शभ म्बन दिखलायी पड़े न: अगभ फल नष्ट होकर गा फल की प्राप्ति होती है 111421 प्रस्वपेदशुभे स्वप्ने जप्त्वा पञ्चनमस्क्रियाम्। दृष्टे स्वप्ने शुभेनैव दुःस्वप्ने शान्तिमाचरेत् ।।। 43॥ अशुभ रवान ः दिनायी पड़ने पर जगण.. णमोकार मंत्र का पाठ करना चाहिए। यदि अगभ म्बान के पश्चात् शुभ स्वप्न आगेनो दुष्ट स्वप्न की शान्ति का उपाय करने ही आवश्यकता नहीं ॥1 431 स्वं प्रकाश्य गुरोरगे सुधी: स्वप्नं शुभाशुभम् । परेषामशुभं स्वप्नं पुरो नैव प्रकाशयेत् ।।।44 बुद्धिमान व्यक्ति को अपने गुरु के समक्ष गुभ और अश भ रवप्नों का कथन करना चाहिए, किन्तु अशुभ स्वप्न को ग के अतिरिवत अन्य व्यक्ति के समक्ष कभी भी नहीं प्रकाशित करना चाहिए441 निमित्तं स्वप्न चोक्त्वा पूर्वशास्त्रानुसारतः । लिङ्गन तं वे इष्टं निर्दिष्टं च यथागमम् ।। 45।। पूर्व शारयों के अनुसार स्वप्न निमिन ा वर्णन लिया गया है अब लिंग ये अनुसार इसके इण्टानिष्ट आगमानन वर्णन करते हैं 1145t| शरीरं प्रथम लिङ्ग द्वितीयं जलमध्यगम। यथोक्तं गौतमेनैव तथैवं प्रोच्यते मया ।।146।। प्रथम लिग मा गैर है और द्वितीय लिंग जलमध्या है. इनका जिग प्रकार से पहले गौतम स्वामी न वर्णन लिया है वैमा हो मैं वर्णन करता हूं ।। 146॥ स्नातं लिप्तं सुगन्धन वरमन्त्रेण मन्त्रितम् । अष्टोत्तरशतेनापि यन्त्री पश्येत्तदङ्गकम् ।। 147।। ऊं ह्रीं नाः हः प; लक्ष्मी भवी कुरु कुरु स्वाहा । ग्नान कर सुगन्धित लगाव र 108 बार इस मंत्र से मंत्रित होकर स्वप्न

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