Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहुसंहिता ॐ ह्रौं ला: ह्वः प: लक्ष्मी गावों कुरु कुरु स्वाहा । भतं मन्त्रिततैलेन माजितं ता भाजनम् । पिहितं शुक्लवस्त्रेण सन्ध्यायां स्थापयेत् सुधीः ।।15411 तस्योपरि पुनदत्वा नूतनां कुण्डिका तत: । जातिपुर्जयेदेवं स्वष्टाधिकशतं तत:115511 क्षीरान्न भोजनं कृत्वा भूमौ सुप्येत मन्त्रिणा। प्रात: पश्येत्स तत्रैव तैलमध्ये निजं मखम् ।।15611 निजास्यं चेन्न पश्येच्च षण्मासं च जीवति ।
इत्येवं च समासेन द्विधा लिग प्रभाषितम् ।।15711 अब आचार्य तल में मुखदर्शन की विधि द्वारा आय का निश्चय व ने बी गरिमा बताना : :: : मोवीं बुझ र स्याहा" इस मंत्र द्वारा मंत्रित तेल से भरे हाए । सुन्दर माफ या स्वछ नांव व वर्तन को सन्ध्या समय गुवा बस्त्र ढककर रखे, पुनः उभ पर एक नवीन कुड़िया स्थापित कर उपर्युक्त मंत्र का जुही के पुणों से 108 बार जाप कारे, चात् खीर का भोजन क । मंत्रित व्यक्ति भूमि पर अयन ग.रे और प्रातःकाल उ' उस नेल में अपने मातु म. देखे । यदि अपना मन दम तेल में न दिलाई गई तो छह मास की आय समझनी चाहिए । इस प्रकार संक्षेग ग आचाय न दोनों का के लिंगों का वर्णन किया है ।।। 54-15711
शब्दनिमितं पूर्व स्नात्वा निमित्तत: सुदिवासा विशुद्ध धीः । अम्बिकाप्रतिमां शुद्धां स्नापयित्वा रसादिक: 1580 अचित्ता चन्दनः पुष्पैः श्वेतवस्त्रसुवेष्टिताम् ।
प्रक्षिप्य वामकक्षायां गृहीत्वा पुरुषस्ततः ।।1591 शब्द निमित्त का वर्णन मारते हुए आचार्यो में बतलाया है कि माद दो प्रकार के होते है देवी और प्राकृतिक । यहाँ देवी शब्द का कथन दिया जा रहा है। स्नान कर स्वच्छ और न वस्त्र धारण करे । अनन्तर अम्बिका की मूर्ति का जल, दुग्धादि से अभिपक र श्वेत वस्त्रो से आच्छादित करे । पश्चात् वन्दन, पुष्प, नैवेद्य आदि में उनकी पूजा करे । इनान्तर बामें हाथ के नीचे १७ । र गन्द्र गुनने के लिए निम्न विधि का प्रयोग र) 158-15911
निशायाः प्रथमे यामे प्रभाते यदि वा धजत । इमं मन्त्रं पठन् व्यक्तं श्रोतुं शब्द शुभाशुभम् ।।1601