Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

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Page 555
________________ 468 भद्रबाहुसंहिता अथवा मृगांकहीन मलिनं चन्द्रञ्च पुरुषसादृश्यम् । प्राणी पश्यति नूनं मासादूर्ध्वं भवान्तरं याति ।।4411 यदि कोई चन्द्रमा को मगचिह्न से रहित धमिल, और गुरुषाकार में देखें तो वह एक माग जीवित रहता है ।14411 इति प्रोक्तं पदार्थस्थमारिष्टं शास्त्रदष्टितः । इत: परं प्रवक्ष्यामि रूपस्थञ्च यथागमम् ।।45॥ इस प्रकार पदार्थ अरिष्टों का शास्त्रानुसार निरूपण किया, अब रूपस्थ अरिष्टों का आगगानमार निरूपण करता है 1145।। स्वरूपं दृश्यते यत्र रूपस्थं तन्निरूप्यते। बहुभेदं भवेत्तत्र क्रमेणव निमद्यते ॥46।। नहाँ मग दिखलाया जाय वहाँ रूपम्प अरिप्ट कहा जाता है। यह रू५५५ अगिह अने प्रकार का होता है । इसका बन्न कमाणः भवन किया जायेगा।146 लायापुरुष स्वप्न प्रत्यक्षतया च लिङ्गनिर्दिष्टम् । प्रश्नगतं प्रभणन्ति तपस्थं निमित्तज्ञाः ॥47।। वायाम्प, स्वप्नपर्गन, प्रत्यक्ष, अनुमानजन्य और प्रश्न द्वार निरूपित को अरिष्टयेत्ताओं का अरिष्ट कहा है ।147।। प्रक्षालितनिजदेहः सितवस्त्रायविभूषितः । सम्यक् स्वछायामेकान्ते पश्यतु मन्त्रेण मन्त्रित्वा ॥4811 ॐ हीं बन रवन रवतप्रिय सिंहमर तकरामार कामाविडनी देखि ! मम शरीरे अवतर अवतर छाया नयां कु.म. कुरु ह्रीं स्वाहा। इति मन्त्रितसर्वांगो मन्त्री पश्येन्नरस्य बरछायाम् । शुभदिवसे परिहोने जलधरपवनेन परिहीने ।।49॥ समशुभतलेऽस्मिन् तोयतुषांगारचर्मपरिहीने। इतरच्छायारहिते त्रिकरणशुद्धया प्रपश्यन्तु ।।50॥ रनान भार, श्वेत और स्वच्छ वस्त्रों में मुसज्जित हो एकान्त में "ॐ की रक्त खाते का प्रिय मिहमस्तस मामले काभाण्डिनी देदि ! मम शरीरे अबतर अवतर छायां सत्यां नाम कुछ ही स्वाहा।' इस मन्त्र में शरीर को मन्वित कर शुभ वारों में -- मो.न, बुध, गुरु और शुत्रवार के पूर्वाह्न में वायु और मेघरहित आकाश के होन पग-चन और कार्य की शुद्धता के साथ समतल और जल, भूसा,

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