Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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परिणिष्टाध्यायः
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यदि किसी के दानों सुकुमार हाथ अकारण ही कटोर और कृपा हो जायं तथा अंगुलियाँ नीधी न हो तो उन अपिट गमझना चाहिए अर्थात् उक्न लक्षण वाले व्यक्ति का पण सात दिन में ही होता है ।।3।।
स्तब्ध लोचनयोर्युग्म विवर्णा काष्ठवतनः ।
प्रस्वेदो यस्य भालस्थः विकृतं वदनं तया ॥14॥ जिसमें दोनों नेत्र स्तब्ध अर्थात् निवृत्त हो जागं तथा शरीर विकृत वर्ण और काठ के समान बाठोर हो जाय और मस्तक पर अधिक पगीना आये तथा पुरा विवृत हो जाय तो अगिट समझना चाहिए अर्थात् मात दिनों में मधु हाती 111411
निनिमित्तो मखे हासश्चक्षुभ्यां जलबिन्दवः ।
अहोरात्रं सवन्त्येव नखरोमाणि यालि च ॥15॥ बिना किसी कारण के अधिक हंसी भागे, आँवों में व्याप्त हैं और नख तथा रोम रिन्द्रों में पसीना निकालना हो नो मात दिन में प्रत्य ममशनी चाहिए ।।। 511
सकष्णा दशना यस्य न घोषाकर्षनं पनः ।
एतैश्चिह्नस्तु प्रत्येकं तस्यायुर्दिनसप्तकम् ।।।6।। जिसके दाँत काले हो जाये तथा बाछिद्रों को बन्द करने पर भीतर में होन वाली आवाज सुनाई न पड़े तो सात दिन की आयु समझनी चाहिए ॥16॥
निर्मच्छस्तुट्यते वायुस्तस्य पक्षकजीवनम् ।
नेत्रयोर्मीलनाज्ज्योतिरदृष्टौ दिनसप्तकम् ॥17॥ यदि शरीर से निकलती हुई वात्रु बीच में ट-सी जाय तो पन्द्रह दिन की आगु शेष समझनी चाहिए अथवा बाहर निकलने में श्याम तेज हो तो पन्द्रह दिन की आयु समझनी चाहिए। दोनों नेत्रा को अग्रभाग को थोड़ा-सा बन्द करने पर उनमें से जो ज्योति निकलती है यदि वह ज्योति निगलती हुई दिखाई न पड़े तो सात दिन की आयु समझनी चाहिए ।।। 7॥
भ्रमध्ये नासिका जिह्वादर्शने च यथाक्रमम्।
नवत्र्येकदिनान्येव सरोगी जीवति ध्रुवम् ॥18॥ यदि भौंह के मध्य भाग को न देख मार तो नौ दिन, नासिका न दिखलाई पड़े तो तीन दिन और जिह्वा न दिखलाई पड़े तो एक दिन की प्रायु होती है, अर्थात् उस रोगी की पूर्वोक्त दिनों में मृत्यु हो जाती है ।।। 81।