Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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त्रयोदशोऽध्यायः
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अभिद्रवन्ति यां सेनां विस्वरं मगपक्षिणः ।
श्वमानुषश्चगाला वा सा सेना वध्यते परः ॥४2॥ जिस सेना पर विकृत स्वर में आवाज करते हुए पशु-पक्षी आक्रमण करें अथवा कुत्ता, मनुष्य और शृगाल सेना का पीछा करें तो यह सना शत्रुओं के द्वारा वध को प्राप्त होती है 182।।
भग्नं दग्धं च शकटं यस्य राज्ञ: प्रयायिणः ।
देवोपसष्टं जानीयान्न तत्र गमनं शिवम् ।।83।। प्रस्थान करने वाले जिस राजा की गाड़ी---रथ, या अन्य वाहन अनाममात भग्न या दग्ध हो जाय तो उसे यह दैविक उपसर्ग समझना चाहिए और उसका गमन करना कल्याणकारी नहीं है ।। 831
उल्का वा विद्युतोऽभ्र वा कनका: सूर्यरश्मयः ।
स्तनितं यदि वा छिद्र सा सेना वध्यते परैः ॥841 यदि प्रयाण काल में उल्का, विद्य त्, अभ्र और सुर्ग को रवर्ण किरणें स्तनित कड़कती हुई अथवा सछिद्र दिखाई पड़ें तो रोना शत्रुओं ने द्वारा वध को प्राप्त होती है ।।84॥
प्रयातायास्तु सेनाया यदि कश्चिन्निवर्तते।
चतुष्पदो द्विपदो वा न सा यात्रा विशिष्यते ॥४॥ यदि प्रयाण करने वाली सेना से कोई चतुरपद---हाथी, घोड़े आदि पशु (या द्विपद---मनुष्य (या पक्षी) लौटने लगे तो उस यात्रा को शिष्ट-शुभकारी नहीं समझना चाहिए ।।851
प्रयातो दि वा राजा निपतेद् वाहनात क्वचित् ।
अन्यो वाऽपि गजाऽश्वी वा साऽपि यात्रा जुगुप्सिता॥86।। यदि प्रयाण करता हुआ राजा यकायक सवारी में गिर जाये अश्रया अन्य हाथी, घोड़े गिर जायें तो यात्रा को निन्दित समझना चाहिए ।।6।।
ऋव्यादाः पक्षिणो यत्र निलीयन्ते ध्वजादिषु ।
निवेदयन्ति ते राज्ञस्तस्य घोरं चमूवधम् ॥871 जिस राजा की सेना की ध्वजा पर मांसभक्षी पक्षी बंट जार्य तो उस राजा की सेना का भयंकर वध होता है ।।871
मुहुर्मुहुर्यदा राजा निवर्तन्तो निमित्ततः । प्रयात: परचक्रण सोऽपि वध्येत संयुगे॥४४॥