Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
विंशतितमोऽध्यायः
राहुचारं प्रवक्ष्यामि क्षेमाय च सुखाय च ।
द्वादशाङ्गविद्भिः प्रोक्तं निग्रन्थस्तत्ववेदिभिः ।। द्वादशांग के बेना निर्गन्य मुनियों के द्वारा प्रतिपादित राहुयार को बाल्याण और सुख के लिए निरूपण करता हूं 1111
श्वेतो रक्तश्च पीतश्च विवर्णः कृष्ण एव च।
ब्राह्मण क्षत्र-वैश्यानां विजाति-शूद्रयोर्मत:।12।। राहु का श्वेत, रक्त, पीत और कृष्ण वर्ण नामशः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों के लिए शुभाशुभ निरिक माने गये है ।
षमासान् प्रकृतिज्ञेया ग्रहणं वारिक भयम् । त्रयोदशानां मासानां पुर रोधं समादिशेत् ।।3।। चतुर्दशानां मासानां विन्ध्राद् वाहनजं भयम्। अथ पञ्चदशे मासे बालानां भयमादिशत् ॥4॥ षोडशानां तु मासानां महामन्त्रि भयं वदेत् । अष्टादशानां मासानां विन्द्याद् राज्ञस्ततो भयम् ।।5।। एकोनविंशकं पर्वविशं कृत्वा नृपं वर्धत् ।
अत: परं च यत् सर्व विन्द्यात् तत्र कलि मुवि ॥6॥ राहु की प्रकृति छः महीने तया. ग्रहणा एक वर्ग त भत्र उत्पन्न करता है। विकृत ग्रहण से तेरह महीने तमा नगर का अवरोध होता है, चौदह महीने तर वाहन का भय और पन्द्रह महीने तक स्त्रियों को भय होता है। सोलह महीने तक महामन्त्रियों को भय, अठारह महीने त राजाओं को भय होता है । उन्नीस गहीन या बीस महीने तक राजाओं के वध की संभावना रहती है। इससे अधिक गाय तक फल प्राप्त हो तो पृथ्वी पर कलियुग का ही प्रभाव जानना चाहिए ।।3-611
पञ्चसंवत्सरं घोरं चन्द्रस्य ग्रहणं परम् ।।
विग्रहं तु पर विन्द्यात् सूर्यद्वादशवाधिकम् ।।7।। चन्द्रग्रहण के पश्चात् पाँच वर्ष संकट के और सूर्यग्रहण के बाद बारह वर्ष संकट के होते हैं 117॥
यदा प्रतिपदि चन्द्रः प्रकृत्या विकृतो भवेत् । अथ भिन्लो विवर्णो वा तदा झंयो ग्रहागमः ।।8।।