Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

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Page 524
________________ 437 पड्विंशतितमोऽध्याय: नागाने वेश्मनः सालो यः स्वप्ने चरते नरः। सोऽचिराद् वमते लक्ष्मी क्लेशं चाप्नोति दारुणम् ।।4।। जो व्यक्ति श्रेष्ठ महल के परकोटे पर चढ़ता हुआ देखे वह श्रेष्ठ लक्ष्मी का त्याग करता है, भयंकर कष्ट उठाता है ।।4011 दर्शनं ग्रहणं भग्नं शयनासनमेव च । प्रशस्तमाममांसं च स्वप्ने वृद्धिकरं हितम् ॥4111 स्वप्न में कच्चा मांस का दर्शन, महण भारत नश्रा एन, मान करना हितकर और प्रशस्त माना गया है ।।41।। 'पक्वमांसस्य घासाय भक्षणं ग्रहणं तथा । स्वप्ने व्याधिभयं विधाद् भद्रबाहुबची यथा ॥2॥ बार में पतब मान का दर्शन, ग्रहण और 'नागम् व्याधि, गाय मार कष्टोत्पादक माना गया है, मा 'भद्रबाहु स्वामी का वचन है ।।1211 छदने मरणं विन्द्यादर्थनाशो विरेचने। क्षत्रो यानाद्यधान्यानां ग्रहणे मागमादिशेत् ।।3।। स्वप्न में बमन करना देखने से मरणा, बिरेचर-दस्त लगना देखने में बम नाश, पान आदि के छात्र को ग्रहण करने से धन-धान्य का अभाव होता है ।।4311 मधुरे निवेशस्वप्ने दिवा च यस्य वेश्मनि । तस्यार्थनाशं नियतं मृति वाभिनिदिशेत् ।।4।। दिम स्वप्न में जिगक घर में प्रवेश करता हुआ देख, उमा धन नाल निश्चित होता है अथवा वह मृत्य का देश करता है !14411 य: स्वप्ने गायले हसते नत्यते पठते नरः। गायने रोदन विन्यात् "नतेने वध-बन्धनम् ॥45। जो व्यक्ति स्वप्न में गाना, हंसना, नाचना और पड़ना देवता है उसे गाना देखने में गेना पड़ता है और नाचना देखन से बध-बन्धन होता है ।।45।। हसने शोचनं ब्रूयात कलहं पठने तथा । बन्धने स्थानमेव स्यात् 'मुक्तो देशान्तरं बजत् ॥4॥ 1. My (410) मु. 2. {। 3.14.1 .4. FTP | S.;

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