Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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पविशतितमोऽध्याय: कन्या बाऽऽपि वा कन्या रूपमेव विभूषिता।
प्रकृष्टा दृश्यते स्वप्ने लभते योषित: श्रियम् ।।28। यदि स्वप्न में सुन्दर रूपगुस्त कन्या या आर्या दिखलाई पड़े तो गुन्दर स्त्री की प्राप्ति होती है 1178।।
प्रक्षिप्यति यः शस्त्र: पथिवीं पर्वतान प्रति ।
शुभमारोहते यस्य सोऽभिषेकमवाप्नुयात् ॥7॥ जो व्यक्ति स्वप्न में शम्त्रों द्वारा शुओं का परत कर पृथ्वी जयंती it अपने अधीन बार लेना देवता है अथवा जो मन गयंसा पर अपन गारोहण करता हुआ दग्नता है, वह राज्याभिषेक का प्रा होता है. 179।।
नारी परत्वं नर: स्त्रीत्वं लभते स्वप्नदर्शने ।
बध्येते तावुभी शोघ्र कुटुम्बपरिवृद्धम् ।।४।। यदि र म ग : पी अनि यो मार गुम्पनी होना i कुम्ब के बन्धन में बंधन में 18011
राजा राजसुतश्चौरी यो सााधन-धान्यतः । - स्वप्ने संजायते कश्चित् स राजामभिवृद्रिये ।।४।।
यदि स्वप्न में कोई धर्म-धान्य ग गुरत ही गाजा नजान या गाडीन। अपने को दग्पे बह राजा की अभिवद्धि का पता: 18! ।।
रुधिराभिषिक्तां कत्वा य: ग्ब ने परिणीयने।
धन्न-धान्य-श्रिया युक्तो न घिरात जावते नरः ॥82।। जो व्यक्ति में #f मा अमिमा हाम विवाद
l है, वह पतित चिरकाल नाग-II दान ।। ||S 21!
शस्त्रेण छिद्यते जिह्वा स्वाने यस्य कथञ्चन ।
क्षत्रियो राज्यमाप्नोति शेषा वृद्धिमवाप्नुयुः ।।8.31 गदि म्वप्न में जिह्वा या शास्त्र ग छान वरना आदि तात्रियो को राज्य की प्राप्ति और अन्य वणं बालों का जयदया होता है 183।।
देव-साधु-द्विजातीनां पूजनं शान्तय हितम् । पापरवप्ना कायस्य शोधनं चौपवासनम् ।।४।।
1. कुमाया म ।