Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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पविशतितमोऽध्यायः
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स्वप्न में जिस घर में लाक्षारस । रोम अथव! वायु का अभाव देखा जाय उस घर में या तो आग लगती है या नोरों द्वारा शस्त्रघात होता है ।।27।।
अगम्यागमनं चैव सौभाग्यस्याभिवृद्धये ।
अलं कृत्वा 'रसं पीत्वा यस्य वस्त्रयाश्च यद्भवत ॥28॥ जो स्वप्न में अलंकार करके, रस पीकर अगम्या ममन . जोत्री पूज्य है उसके माथ रमण करना--देखता है, उसके सौभाग्य की वृद्धि होती है ।।28।।
"शून्यं चतुष्पथं स्वप्ने यो भयं विश्य बुध्यते।
पुत्रं न लभते भार्या सुरूपं सुपरिच्छदम् ॥29।। स्वप्न में जो व्यक्ति निर्जन चारा मार्ग में प्रविष्ट होना देये, पश्चान जानन हो जाय नो गकी स्त्री को गुन्दर, गणग्रस्त पुत्र की प्राप्ति नहीं होती है ।129।।
वीणां विषं च वल्ली स्वप्नं गृहा विबुध्यते ।
कन्यां तु लभते भार्या कुलरूपविभूषिताम् ।।30। मवान में वीणा, बाकी : वि को ग्रहण करे. पचात् जाग्रत हो जाय तो उसकी स्त्री को सुन्द: *. १ मा यका कन्या मनाती है 5000
विषेण म्रियते यस्तु विषं वापि पिचेन्नरः ।
'स युक्तो धन-धान्येन बध्यते न निरादि सः ॥31॥ जो व्यक्ति म्यान में विय भक्षणा द्वारा मृत्य को प्राप्त हो वा विष 'भक्षण करना देख वह धन-धान्य से पकन होना है नया चिमाल ना -धिन समय तक यह किसी प्रकार बन्धन में बंधा नहीं रहता है ।। 3 ।।।
"उपाचरन्नासवाज्ये मति गत्वाप्याकञ्चनः ।
व याद वै सद्वचः किञ्चिन्नासत्यं वृद्धये हितम् ॥32॥ यदि स्त्र में :-[ बायकोचत ।। पान र नाहा नप अथवा किचन निगहाग क
रना हुआ न नी म अशा स्व की गान्ति के लिए गाया। बोना चाहि कि शाहाजी अरामा भागण विताय के लिए हितकारी नहीं होता ।।32॥
'प्रतयुक्तं समारूढो दंष्ट्रियुक्तं च यो रथम् । दक्षिणाभिमुखो याति म्रियते सोचिरान्नर ॥33॥
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