Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहसंहिता
रुद्राक्षी विकृता कालो नारी स्वप्ने च कर्षति । उत्तरां दक्षिणां विशं मृत्युः शीघ्र समीहते ।।5।।
भयंकर, विकृत रूपवाली, काली स्त्री यदि स्वप्न में उत्तर या दक्षिण दिशा की ओर खींचे तो शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त होता है ।।591
जटी मुण्डों विरूपाक्षां मलिना मलिनवाससाम् ।
स्वप्ने य: पश्यति ग्लानि समूहे भयमादिवोत् ।।601 जटाधारी, सिरमुण्डित, विरूपाकृति वाली, मलिन एवं मलिन बस्त्र वाली स्त्री को स्वप्न में म्लानिपूर्वक देखना सामूहिक भय का सूचक है 11601
'ताफ्सं पुण्डरीक वा भिक्षु विकलमेव च।
दृष्ट्वा स्वप्ने विबुध्येत म्लानि जस्य समाविकोत् ॥611 आगरवी पुण्डरीक तथा विकल भिक्षु को स्वप्न में देखकर जो जाग जाता है, उसे ग्लानि फल की प्राप्ति होती है ।।6।।।
स्थले वाऽपि विकायत जले वा नाशमानुयात् ।
यस्य स्वप्ने नरस्यास्य तस्य विद्यारमहद् भयम् ।।6211 जो व्यक्ति भमि पर विकीण-फल जाना और जल में नाश को प्राप्त हो जाना देखता है, उस व्यक्ति को महान् भय होता है 162॥
बल्ली-गुल्मसमो वृक्षो वल्मीको यस्य जायते।
शरीरे तस्य विज्ञेयं तदंगस्य विनाशनम् ।।6311 जो व्यक्ति स्वप्न में अपने शरीर पर लता, गुल्म, वृक्ष, बालगीत: बाँची आदि का होना देवता है उसके शरीर का विनाश होता है ।। 6 3।।
मालो वा वेणुगुल्मो वा खजूरो हरितो द्रुमः ।
मस्तके जायते स्वप्ने तस्य साप्ताहिकः स्मृतः ।।641 स्वप्न में जो व्यक्ति अपने मस्तक पर गाला, बाँस, गुल्म, खजूर अथवा हरे वश्नों को उपजन देखता है, उसको एक सप्ताह में मृत्यु होती है 116411
हृदये यस्य जायन्ते तद्रोगेण विनश्यति ।
अनंगजायमानेषु तदंगस्य विनिर्दिशेत् 165॥ यदि हृदय में उक्त वृक्षादिका सान्न होना पवन में बता दय रोग में I. ४. गा कपल मंत्र ५ म. , 3 न पग चिनम् ।