Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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एड्विंशतितमोऽध्यायः सौभाग्यमर्थ लभते लिंगच्छेदात् स्त्रियं नरः ।
भगच्छेदे तथा नारी पुरुषं प्राप्नुयात् फलम् ।।16।। जो व्यक्ति स्वप्न में गूर्य या चन्द्रमा का स्पर्श करता हुआ देखता है अथवा शत्रु सेनापति को मारकर मशान भूमि में निर्भीक घूमता हुआ देखता है वह व्यक्ति सांभाग्य और धन प्राप्त करता है। लिंगोद होना देखने से पुरुष को स्त्री की प्राप्ति तथा भगच्छेद होना देखने से स्त्री को पुरुष की प्राप्ति होती है ।। 1 5-16।।
शिरो वा छिद्यते यस्तु सोऽसिना छिद्यतेऽपि वा।
सहस्त्रलाभं जानीयाद् भोगांश्च विपुलान् नृपः ।।17।। जो राजा स्वप्न में शिर कटा हुआ देखता है अथवा तलवार के द्वारा छेदित होता हुआ देखता है, वह सहनों का लाभ तथा प्रच र भोग प्राप्त करता है । 1711
धनरारोहते यस्तु विस्फारण-ममार्जने।
लखामं विजानीयाः अयं सुधि रिसोर्दधम् ।।३।। जो राजा स्वप्न में धनग पर वाश वहना, धनार का रफालन करना, प्रत्यंचा का ममेटना आदि देवता है. य. अर्थलाभ ारता है, यद्ध में जय और जानु वा बध होता है 111 8।।
द्विगाढ़ हस्तिनारद: शुक्लो वाससलंकृतः ।
यः स्वप्ने जायते भीत: समृद्धि लभते सतीम् ॥19॥ जो स्वप्न में शुक्ल वस्य और श्रेष्ठ आभूषणों में अलंकृत होकर हाथी पर चढ़ा हुआ भीत-भयभीत देखता है, वह गमृद्धि को प्राप्त होता है ।। 1911
देवान् साधु-द्विजान् प्रेतान् स्वप्ने पश्यन्ति 'तुष्टिभिः ।
सर्वे ते सुखमिच्छन्ति विपरीते विपर्ययः ।।20। जो स्वप्न में सन्ताप के साथ देव, माध, ब्राह्मणों को और प्रेतों को देखते हैं. वे सब सुख चाहते हैं-सुख प्राप्त करते हैं और विपरीत देवनं पर विपरीत फल होता है अर्थात स्वप्न में उक्त देव-साध आदि वा क्रोधित होना देखने से उल्टा फल होता है ।।20।।
महद्वारं विवर्णमभिज्ञादा यो गहं नरः ।
व्यसनान्मुच्यते शीन्न स्वप्नं दृष्ट्वा हि तादृशम् ॥21|| जो व्यक्ति स्वप्न में गृहद्वार या गृह को विवर्ण देय या पहचाने वह शीघ्र - 1. गगन : १. १० 1 2. पुष्टवि. १० . Fif+17 भू. ।