Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
432
भद्रबाहुसंहिता
प्रासादं कुञ्जरवरानारुह्य सागरं विशेत् ।
तथैव च विकथ्येत तस्य नीचो नृपो भवेत् ॥9॥ श्रेष्ठ हाथी पर चढ़कर जो महल या समुद्र में प्रवेश करता है या स्वप्न में देखता है वह नीच नृप होता है ।।9।।
पुष्करिण्यां तु यस्तीरे भुञ्जीत शालिभोजनम् ।
श्वेतं गजं समारूढः स राजा अचिराद् भवेत् ॥1॥ जो स्वप्न में श्वेत हाथी पर चढ़कर नदी या नदी के तट पर भात का भोजन वारता हा देवता है, वह शीघ्र ही राजा होता है ।। 1 (01|
सुवर्ण-रूप्यभाण्डे वा यः पूर्वनवरा स्नुयात् ।
प्रासादे वाऽथ भूमौ वा याने वा राज्यमाप्नुयात् 11111 जो व्यगित स्वप्न में शसाद, भमि या सवारी पर आरूढ़ हो सोने या चाँदी के बर्तनों में स्नान, भोजन-पान आदि की क्रियाएँ करता हुआ देख उसे राज्य की प्राप्ति होती है । 111
"दलेष्ममूत्रपुरीषाणि यः स्वप्ने च विकृष्यति ।
राज्यं राज्यफलं वाऽपि सोऽचिरात् प्राप्नुयान्नरः ।।120 जो राजा म्यान में श्वेत वर्ण के मल, मूत्र आदि को इधर-उधर खींचता है, बह राज्य और राज्य फल को शीघ्र ही प्राप्त करता है ।।।2
यन्त्र वा तत्र वा स्थित्वा जिह्वायां लिखते नखः ।
दीर्घया रक्तया स्थित्वा स नीचोऽपि नपो भवेत् ।।3।। जो व्यथित स्वप्न में जहां-तहाँ स्थित होकर जिह्वा - जीभ को नख से खुरचता हा देख अथवा रक्त की लाल वर्ण की दीर्घा—झील में स्थित होता हुआ देखे तो वह व्यक्ति नीच होन पर भी राजा होता है ।।13।।
भूमि ससागरजला सशैल-वन-काननाम् ।
बाहुभ्यामुखरेद्यस्तु स राज्यं प्राप्नुयान्नरः ॥14॥ जो व्यक्ति म्बान में वन-पर्यन-अगम्य गक्त पृथ्वी सहित समुद्र के जल को भजाओं द्वारा पार करता हुआ देग्यता है, वह गज्य प्राप्त करता है IIT 4||
आदित्यं वाऽथ चन्द्र वा य: स्वप्ने स्पशते नरः । श्मशानभध्ये निभोक: परं हत्वा चमपतिम् ॥5॥
1 1 ...त | 2. प्रयत न
गय न ।