Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहुसंहिता
प्रायेण हिंसते देशानेतान् स्थूलस्तु चन्द्रमाः ।
समे शृंगे च विद्वेष्टी तथा यात्रा न योजयेत् ॥8॥ स्थल चन्द्रमा शबर, दण्डका, उड़, मन्द्र, द्रविड, शूद्र, महासन, वृत्य, सभी समुद्र, आनर्त, मलकीर, कोकण, प्रलयम्बिान, रोमवृत्त, पुलिन्द, मरुभूमि और कच्छ
आदि देशों वा घात करता है । यदि चन्द्रमा का समान शृग हो तो यात्रा नहीं करनी चाहिए ।।6-811
चतुर्थी पञ्चमी षष्ठी विवर्णो विकृतः शशी।
यदा मध्येन व पास पाधि हान्ति मालवम् ॥9॥ जन्न चतुर्थी, पञ्चमी और साठी तिथि को चन्द्रमा विकृत, बदरंग दिखलाई पड़े अथवा वह मध्य में गमन करता हो तो गालव नृप का विनाश करता है ।19॥
काञ्चों किरातान् द्रमिलान शाक्यान लुब्धास्तु सप्तमी।
कुमारं युवराजञ्च चन्द्रो हन्यात् तथाऽग्टमी 1101 मप्तमी और अष्टमी का विकृत चन्द्रमा कांची, किरात, मिल, शाक्य, लुब्धय एवं कुमार और युवराजों का विनाश करता है 11101
नवमी मन्त्रिणश्चौरान अध्वगान वरसन्निभान ।
दशमी स्थविरान हन्यात् तथा वै पार्थिवान प्रियान ॥11॥ नवमी का विकृत चन्द्रमा मन्त्री, चोर, पथिक और अन्य श्रेष्ठ लोगों का तथा दशमी का विकृत चन्द्र स्थविर राजा और उनकी प्रिया का विनाश करता
एकादशो भयं कुर्यात ग्रामीणांश्च तथा गवाम् ।
द्वादशो राजपुरुषांश्च वस्त्रं सस्यं च पीडयेत् ॥2॥ एकादशी का विकृत चन्द्रमा ग्राण और गायों को भय मारता है तथा द्वादशी का चन्द्रमा राजपुरुष-राजकर्मचारी, वस्त्र और अनाज का घात करता है ।।12।।
त्रयोदशी-चतुर्दश्योभयं शस्त्रं च मूर्च्छति ।
संग्रामः संभ्रमश्चैव जायते वर्णसंकरः ।।।३॥ त्रयोदशी और चतुर्दशी ना विकृत चन्द्रमा भयोपदक, शम्त्रकोप और . मूर्छा करता है । संग्राभ----युद्ध और आकुलता व्याप्त होती है और वर्णमंकर पंदा
होते हैं ।। ! 3।।