Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहुसंहिता
पृथ्वी के उत्पन्न हुए पदार्थ, कन्दमूल, फल और उष्ण पदार्थ सूर्य के प्रति पुद्गल हैं। यहां प्रतिपुद्गल शब्द का अर्थ उस ग्रह की स्थिति द्वारा उक्त पदार्थों की तेजी - मन्दी जानने का रूप है 1110
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नक्षत्रं भार्गवः सोमः शोभेते सर्वशो यथा ।
यथा द्वारं तथा विन्द्यात् सर्ववस्तु यथाविधि ॥1॥
किसी भी नक्षत्र में शुक्र और चन्द्र सर्वां रूप में कोशित हो तो उस नक्षत्र के द्वार, दिशा और स्वरूप आदि के द्वारा वस्तुओं की तेजी - मन्दी कही जाती है । ] ॥
विवर्णा यदि सेवन्ते ग्रहा व राहुणा समम् । दक्षिणां दक्षिणे मार्गे वैश्वानरपथं प्रति ॥12॥
गिरिनिम्ने च निम्नेषु नदी - पल्वलवारिषु । एतेषु वापयेद् बीजं स्थलवज्जं यथा भवेत् 11330 मल्लजा मालवे देशे' सौराष्ट्र सिन्धुसागरे । एतेष्वपि तथा मन्दं प्रियमन्यत् प्रसूयते ॥14॥
यदि भरणी नक्षत्र में राहु के साथ अन्य ग्रह विकृत वर्ग के होकर स्थित हों तथा दक्षिण मार्ग में वैश्वानर पथ के प्रति गमनशील हो तो स्थल -- नीरस भूमि को छोड़कर पर्वत की ऊंची-नीची तलहटी, नदियों के तट एवं पोखरों में बीज बोना चाहिए। काली मिरच मालव देश, गुजरात, समुद्र के तटवर्ती प्रदेशों में मन्दी होती है। इसके अतिरिक्त अन्य वस्तुएँ महंगी होती हैं ।।12-1400
कृत्तिका - रोहिणीयुक्ता बुध-चन्द्र-शनैश्चराः । यदा सेवन्ते सहितास्तदा विन्द्यादिदं फलम् ॥15॥ आयविकं गुडं तेल कार्पासो मधुसर्पिषी । सुवर्ण रजते मुद्गाः शालयस्तिलमेव च || 16: स्निग्धे याम्योत्तरे मार्गे पञ्चद्रोणेन शालयः । दशादकं पश्चिमे स्थात् दक्षिणे तु षडाढकम् ॥17॥
जय बुध, चन्द्र और शनैश्चर वे तीनों एक साथ कृत्तिका विद्ध रोहिणी का योग करें तब घृरा, गुड़, तेल, कपारा, मधु, स्वर्ण, चांदी, मूंग, शाली चावल, तिल आदि पदार्थ महंगे होते है । यदि उक्त ग्रह स्निग्ध दक्षिणोत्तर मार्ग में गमन करते
1. मल्लवा मलबी राष्ट्र मुख्य । 3. गवन सुरु |
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