Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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पंचविशतितमोऽध्यायः
भी
अजा-बकरो और वस्त्र आदि नहीं चाहिए। ता यह है कि चन्द्रमा की उपर्युक्त स्थिति में अन्न उत्पन्न नहीं होता है; अतः सभी वस्तुओं से अनाज खरीद कर उसका संकलन करना चाहिए 113
चित्रायां तु यदा शक्रश्चन्द्रो भवति दक्षिणः । षड्गुणं जायते धान्यं योगक्षेमं च जायते ॥13211
जब चित्रा नक्षत्र में दक्षिण की ओर शुक्र युक्त चन्द्रमा हो तो छः गुना अनाज उत्पन्न होता है और योगक्षेम - गुजर-बसर अच्छी तरह से होती है ॥32॥ इन्द्ररग्निदेवसंयुक्ता यदि सर्वे ग्रहाः कृशाः । अभ्यन्तरेण मार्गस्थास्तारका यास्तु वाद्यतः ॥ 331 कंगु-दार- तिला मुद्गाश्चणकाः वष्टिकाः शुकाः । चित्रायोगं न सर्पेत चन्द्रमा उत्तरो भवेत् ॥34॥
संग्राह्यं च तदा धान्यं योगक्षेमं न जायते । अल्पसारा भवन्त्येते चित्रा वर्षा न संशय ॥1351
यदि सभी कमजोर ग्रह विशाखा नक्षत्र में युक्त होकर अभ्यन्तर मार्ग से बादल की ओर की ताराओं में स्थित हों और चन्द्रमा उत्तर होकर चित्रा में स्थित हो, तो कंगु, तिल, मूंग, चना, साठी का चावल आदि धान्यों का संग्रह करना चाहिए । उक्त प्रकार के योग में योगक्षेप में भोजन छाजन में भी कमी रहती है । वर्षा अल्प होती है, इसमें सन्देह नहीं है 1133-3511
विशाखामध्यगः शुक्रस्तोयदो धान्यवर्धनः । समर्थ यदि विज्ञेयं दशद्रोणक्रयं वदेत् ॥36॥
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यदि विशाखा नक्षत्र के मध्य में शुक्र का अस्त हो तो धान्य की उपज अच्छी होती है, अनाज का भाव सम रहता है । दश द्रोण प्रमाण खरीदा जाता है । 36 ।। यायिनी चन्द्र शुक्र तु दक्षिणामुत्तरो तदा ।
तारा - विशाखयो छतिस्तदाऽर्धन्ति चतुष्पदाः ॥37॥
जब यायी चन्द्र और शुक्र दक्षिण और उत्तर में हों और विशाखा की ताराओं काघात हुआ हो तो चौपायों की वृद्धि होती है ॥37॥
दक्षिणेनानुराधायां यदा च व्रजते शशी ।
अप्रभश्च प्रहीणश्च वस्त्रं द्रोणाय कल्पयेत् ॥38॥
1. युक्त: मु० 1 2. बाह्यत. भु. 3. न मु । 4. वर्गा भु ।